श्री यादवनन्दन मल्होत्रा-(लक्कड़ साहब)
Posted on 24-05-2023 11:09 AM

                                                                                     स्व. श्री यादवनन्दन मल्होत्रा जी

                                                                                           जीवन एवं कृतित्व

                                                                                                                -लेखक:डॉ० नीलमणि उपाध्याय

             यादवनन्दन मल्होत्रा दीन दुःखिया तथा दीन सहायक ट्रस्ट, मण्डी के संस्थापक व अध्यक्ष नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा, पूर्णतः समर्पित सेवा-भावना तथा अप्रतिम व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे। आत्मपरिष्कार, निरन्तर संघर्ष तथा

समाज व परिवेश की समुन्नति के लिए सतत प्रयास- इन्हें मण्डी नगर में अद्वितीय तथा अतिविशिष्ट स्थान देते हैं। 11 नवम्बर 2005 को हुए दुःखद निधन से मण्डी को अपूरणीय क्षति हुई है जो सम्भवतः कभी भरी न जा सकेगी।जीवन महान बनता है जब जीवन में महान उद्देश्य हो तथा उसके प्रति हो पूर्ण प्रतिबद्धता । श्री यादवनन्दन मल्होत्रा आजीवन अविवाहित रहे तथा परिवार के दायित्व- भार से ऊपर उठकर उन्होंने दलितों, वञ्चितों, शोषितों, निर्धनों तथा असहाय पुरूषों व स्त्रियों की सेवा तथा समुन्नति के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे युगपुरूष तथा राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी के जीवन एवं कृतित्व से अत्यन्त प्रभावित थे तथा नरसिंह मेहता द्वारा लिपिबद्ध भजन के निहित आदर्श के पालक थे, 'वैष्णव जन को तैने कहिये पीर पराई जाणे रे"।
11 नवम्बर, 2005 को हुए उनके दुःखद देहावसान से लेकर अब तक की समयावधि में यहां के भद्रजनों को नगर में किये गये स्वच्छता तथा गुणात्मक परिवर्तनों के लिए उन्हें स्मरण करते हैं। श्री यादवनन्दन मल्होत्रा के लिए सदा ही मण्डी नगर का विकास व प्रगति प्रिय रही हैं। उन्होंने स्वतः ही त्याग तथा सेवा का मार्ग अपनाया। उन्होंने अपने व्यक्तित्व का स्वयं निर्माण किया तथा त्याग व सेवा भरा जीवन अपनाने के लिए जिगर मुरादाबादी के शब्दों में यही कहा जा सकता है:
अपना ज़माना आप बनाते है अहले दिल | हम वह नहीं हैं जिनको ज़माना बना गया ।। कहावत भी है, "होनहार वीरवान के होत चिकने चिकने पात" -श्री यादवनन्दन मल्होत्रा का विद्यार्थी जीवन भी परम उपलब्धियों तथा अद्भुत क्षमताओं से युक्त रहा है। इनका जन्म 12 जनवरी, 1912 को मण्डी नगर में हुआ। पिता श्री सूदन राम अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्ति थे तथा माता घोघो अत्यन्त स्नेहमयी। इन्होंने 1928 में प्रथम श्रेणी में विजय हाई स्कूल, मण्डी से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। 1930 में सनातन धर्म कॉलेज लाहौर से एफ० एस० सी० पास की। रियासत मण्डी की ओर से स्टेट स्कॉलरशिप पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से 1928 में बी.एस.सी. इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग स्वर्णपदक प्राप्त करते हुए उत्तीर्ण की।
श्री यादवनन्दन मल्होत्रा का ललित कलाओं विशेषतः संगीत तथा अभिनय के प्रति झुकाव रहा। खेलों में भी उनकी अत्यन्त रुचि थी तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की हॉकी टीम के कप्तान रहे हैं। इनकी भाषाओं विशेषतः अंग्रेजी में अद्भुत क्षमता तथा अधिकार रहा है। लिखने तथा पत्रकारिता के प्रति इनकी अभिरूचि स्कूल के विद्यार्थी जीवन से ही रही है। इसी की परिणति 27 वर्ष तक प्रकाशित होने वाले उनके अंग्रेजी पाक्षिक 'हिमाचल ऑबज़वर' के रूप में हुई। उनकी संस्कृत भाषा के प्रति अगाध लगन तथा प्रेम था और इसी का प्रतिफलन भगवद्गीता पर अंग्रेजी में प्रकाशित उनकी पुस्तक 'भगवद्गीता: गॉस्पल ऑफ हिन्दूइज़्म फौर हाउसहोल्डरज्' है। अपने नगर को स्वच्छ, स्वस्थ व समुन्नत करने तथा स्थानीय लोक-संस्कृति विशेषतः लोकगीत के संरक्षण व संवर्धन के लिए सदा ही प्रयत्नशील रहे हैं।
महाकवि भर्तृहरि की सटीक सूक्ति है, "सेवाधर्मः परम गहनो योगिनामप्यगम्यः " अर्थात् सेवाधर्म अत्यन्त गहन है तथा योगी भी इनकी गहनता नहीं जान पाते। श्री यादवनन्दन मल्होत्रा ने पूर्व रियायत मण्डी में 1936 से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में प्रारम्भ की। हिमाचल के मनमोहक नगर चम्बा में एस.डी.ओ. तदनन्तर अधिशासी व अधीक्षण अभियन्ता के रूप में कार्य किया। वे जनवरी 1970 में सेवानिवृत्त हुए। अपने सेवाकाल में उनकी सर्वोत्तम उपलब्धि रही है -हिमाचल के दूर-सुदूर तथा दुर्गम स्थानों में बिजली पहुँचाना। उन्होंने सस्ती दरों पर बिजली पहुँचाने के लिए लोहे के खम्भों के स्थान पर लकड़ी के खम्भों का देशभर में प्रथम बार प्रचलन प्रारम्भ किया।
कहा भी गया है कि हम आधा ज्ञान यात्रा द्वारा तथा आधा पुस्तकें पढ़कर प्राप्त करते हैं तथा पर्यटन इसे पूरा करता है। उन्होंने विश्व-भ्रमण किया तथा म्यनमार, अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया व यूरोप की यात्राएँ की। उनकी सितम्बर 1992 अर्थात् 80 वर्ष की आयु में चीन की तीन महीनों की अकेले ही यात्रा उल्लेखनीय है। वे वस्तुतः सर्वतः उदार तथा विश्व-व्यक्ति (कॉस्मोपोलिटन) हैं। इसी प्रकार वे मानवता तथा विश्व-संस्कृति और सर्वधर्मसमभाव रखते हुए समन्वित संस्कृति 'कम्पोजिट कल्चर' के पक्षधर हैं। जहां तक प्रकाशन का सम्बन्ध है. इन्होंने 27 वर्ष तक 'हिमाचल ऑबज़वर' का मुख्य सम्पादक के रूप में प्रकाशन किया। भगवद्गीता पर अंग्रेजी में लिखित पुस्तक की महत्ता तथा श्रेष्ठता इसी बात से सिद्ध हो जाती है कि यह पुस्तक भारतीय विद्या भवन मुम्बई द्वारा प्रकाशित की गई है। 'गीता -सन्देश' हिन्दी में प्रकाशित अन्य पुस्तक है। डॉ० नीलमणि उपाध्याय द्वारा लिखित 'भगवद्गीता और आनन्दमय जीवन' को इन्होंने प्रायोजित तथा प्रोत्साहित किया है।
समाज-सेवा के अपने जीवानोद्देश्य को व्यावहारिक रूप देने के लिए श्री यादवनन्दन मल्होत्रा ने 1970 में 'दीन दुःखियां तथा 1992 में 'दीन सहायक ट्रस्ट मण्डी की स्थापना की। इनके माध्यम से वे क्षेत्रीय चिकित्सालय मण्डी के बाल तथा टी.बी. विभागों में प्रतिमास फलादिक देते रहे हैं। क्षेत्रीय चिकित्सालय मण्डी के 'गायने' (स्त्री-रोग विज्ञान) के वार्ड के लिए 10 लाख रु. की राशि प्रदान की। उन्होंने बाल, कन्या व वृद्धों के आश्रमों के लिए हज़ारों रूपयों का अनुदान दिया है तथा समाज के निःसहाय, वञ्चित तथा निर्धन स्त्रियों व पुरुषों की प्रतिमास धन के रूप में सहायता करते रहे हैं। निर्धन परन्तु मेधावी छात्रों को स्कॉलरशिप (छात्रवृत्ति) देकर शिक्षा प्राप्त करने में प्रोत्साहित किया।
मण्डी के आसपास के क्षेत्रों के लोगों में बचत की प्रवृत्सि को बढ़ावा देने के लिए श्री यादवनन्दन मल्होत्रा ने कोपरेटिव बैंक में पाँच हजार रूपयों से खाते खोले। जिला पुस्तकालय तथा मण्डी जिला के कॉलेजों के लिए लाखों रुपयों की पुस्तकें भेंट की। वे मण्डी नगर की सांस्कृतिक विरासत तथा खुले स्थानों की सुरक्षा के लिए आजीवन संघर्ष करते रहें। विक्टोरिया पुल के नीचे ब्यास नदी पर एक विशाल जलाशय के निर्माण हेतु उन्होंने अपने पाक्षिक पत्रिका, पोस्टरों आदि से जन-जागरण का प्रयास किया। अब हिमाचल सरकार द्वारा इस योजना को कार्यरूप दिया जा रहा है। इन्होंने खेलों में दौड़ों को प्रोत्साहित करने हेतु ट्रस्ट की ओर से पचास हजार रूपये प्रति वर्ष 2004 तथा 2005 में पुलिस विभाग को अनुदान के रूप में दिये। वे जोगेन्द्र जिमखाना क्लब मण्डी के संस्थापक सदस्य तथा सचिव भी रहे हैं।
कोलडैम की जलविद्युत् परियोजना की मूल संकल्पना, सर्वेक्षण तथा निरूपण में श्री यादवनन्दन मल्होत्रा का विशिष्ट योगदान रहा है। जल-विद्युत् के उत्पादन में उनके योगदान की सराहना माननीय मुख्यमन्त्री श्री वीरभद्र सिंह ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए की। महिलाओं विशेषतः ग्रामीण युवतियों द्वारा पर्वतारोहण तथा साहसिक यात्राओं को अनुदान देकर प्रोत्साहित किया। प्रतिमास किसी गम्भीर विषय पर भाषण,
विचार-विनिमय तथा अन्य बौद्धिक गतिविधियों के लिए उन्होंनें 'बौद्धिक मंच' द्वारा प्रश्रय दिया है।
उनके अपने जीवन की धुरी श्रीमद्भगवद्गीता तथा उसके दिव्य सन्देश के चारों ओर घूमती है। इन्होंने अपनी एस्टेट बिजणी तथा पधर में गीता-भवनों का निर्माण किया तथा भगवद्गीता के 17 श्लोकों को व्याख्या सहित संगमरमर की शिलापट्टिकाओं पर उत्कृत किया है। गीता पर लिखित अपनी पुस्तकों तथा गीता-जयन्ती आदि कार्यक्रमों द्वारा गीता के सन्देश को जन-जन तक पहुँचाया है। उनका जीवन निर्भीकता, स्पष्टवादिता, प्रखर बौद्धिक चिन्तन, कार्यक्षमता, अनुशासन तथा समाज-सुधार के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता रहा है।
दीन सहायक ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष डॉ० ज्योति प्रसाद वैद्य की अध्यक्षता में हम स्वर्गीय यादवनन्दन मल्होत्रा के जीवनादर्शों तथा सत्कार्यो के लिए प्रयत्नशील हैं। सभी पदाधिकारी तथा सदस्य इस सम्बन्ध में वर्तमान कठिनाईयों को पार करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। मण्डी नगरी के महान सपूत श्री यादवनन्दन मल्होत्रा ने अपना सर्वस्व लाखों करोड़ों की सम्पत्ति, समय तथा शक्ति सब दीन-दुःखियों, जनता-जनार्दन की सेवा में लगा दी है। मेरा अपना विश्वास है कि उनका यशः शरीर हमें उनके आदर्शों व स्वप्नों को पूरा करने के लिए अनुप्रेरित करता रहेगा। ऋग्वेद का उद्बोध है 'उपसर्प मातरं भूमिम्' अर्थात् मातृभूमि की सेवा कर।
प्रस्तुतिःडॉ० नीलमणि उपाध्याय,प्रायोजित-अध्यक्ष,
दीन सहायक ट्रस्ट, मण्डी ।


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