Posted on 27-05-2023 02:37 PM
वंशावली-अभिलेखमानव स्वभाव बड़ा विचित्र है कहीं पर भी रहे,कितना भी पढ़ ले, अपनी जड़ों को ढूंढने की जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है कि उसके पूर्वज कौन थे?कहां रहते थे? कहां से आए ?गोत्र क्या था? किन देवी देवताओं की पूजा करते थे? परिवार के रीति रिवाज क्या थे? इत्यादि इत्यादि।यूं तो सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में घर में जब किसी पुरुष सदस्य की मृत्यु होती है तो आयु में बड़े को घर का करताबनाया जाता है और इसको प्रतीकात्मक रूप से बताने के लिए उसको पाग या पगड़ी पहनाई जाती है शादीशुदा पुरुष के लिए पगड़ी उसके ससुराल वाले लाते है। ऐसी प्रथा अभी तक मंडी में जारी है। पाग पहना कर फिर वह पुरुष घर के प्रवेश द्वार तक जाता है और वहां से वापिस आता है। बड़ा होने के नाते अब उसके कंधों पर जिम्मेदारी आ गई है यह प्रथा इस ओर इंगित करती है।आपके मन में प्रश्न आएगा कि राजशाही के समय लोग घरों में वंशावली का रिकॉर्ड कैसे रखते थे तथा इस बारे में क्या नियम व कायदे थे। इस बारे में जांच पड़ताल की तो पता चला कि जब खत्री समुदाय में 13 वें दिन क्रिया रस्म व्यास नदी के किनारे बनी कर्मशाला में होती थी (न्याच्छ) (ब्राह्मण समुदाय में यह 11वें दिन होती है) तो घर में वंशावली किताब पहले से बनी होती थी और उस दिन उसको साथ कर्मशाला में ले जाते थे जहां पर सभी लोगों के सामने उसमें मृतक के वारिसों के नाम अपडेट किए जाते थे और उसे पढ़कर सुनाया जाता था।
इस रस्म को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी गवाह श्री हरबंश मल्होत्रा (निवासी मकान नंबर 92/8 दरम्याना मोहल्ला) हमें मिले जिन्होंने यह विवरण बताया। अलबत्ता उस समय उनकी आयु ज्यादा नहीं मुश्किल से 9 या 10 साल की रही होगी लेकिन उनकी याददाश्त में यह अभी भी अंकित है।
इसी तरह से मण्डीनगर में कई घरों में यह पीढ़ी दर पीढ़ी वंशावली अपडेट होती रहती थी। फिर यह भी पता चला कि हरिद्वार में जो पंडा लोग वंशावली अपनी बहीयों में लिखते हैं वो कभी-कभार साल में एक बार अपने जजमान के घरों में घूमते थे और उनसे पूछ पूछ घर के सभी सदस्यों के नामों के बारे में आवश्यक डाटा लिख कर करके ले जाते थे और फिर अपनी बहियों को वह अपडेट करते थे।
भंगालियों के घर की वंशावली:
चबाटा मोहल्ला में भंगालियों के तीन घर जो भीतर से कॉमन रास्ता से आपस में जुड़े थे और पूर्वजों के समय एक ही घर था। उसमें तीन अलग-अलग प्रवेश द्वार थे जो आज भी वैसे ही मौजूद हैं। इस घर में वंशावली को संजोकर रखने की एक अलग ही प्रथा थी जिस बारे में हमें और जगह सुनने को नहीं मिला।क्योंकि उस समय मकान की दीवारें मिट्टी की बनी होती थी और उन पर (मकोड़) सफेद रंग की पहाड़ी मिट्टी ऊपर से पोती जाती था। इस घर में यह प्रथा थी कि बुजुर्गों के नाम व उनकी अगली पीढ़ी के नाम एक बड़ी दीवार पर नीले रंग से लिखे जाते थे। और उस दीवार पर कई वर्षों तक वंशावली को लिखा जाता रहा लेकिन समय के साथ साथ यह प्रथा कई कारणों से बंद हो गई।
हमें यह रोचक जानकारी श्री पूर्ण प्रकाश गोयल एडवोकेट से मिली जिनके पूर्वज इस घर में पीढ़ी दर पीढ़ी रहते चले आ रहे हैं। इनकेपिता जी ने भी इन वंशावली के मूल रूप को दीवार पर लिखा हुआ देखा था। बाद में भवन निर्माण के दौरान यह ऐतिहासिक धरोहर नष्ट हो गई।पुनश्च:हमारी जानकारी में यह भी आया है कि मंडी के सहगल, गोयल, वैद्य,बहल, लम्क्याड़ू, हांडा व लोहिया परिवारों में भी वंशावलियां बनी है जिनसे व अन्य छूट गए परिवारों से भी संपर्क किया जा रहा है।mandipedia/23फोटो: मंडीपीडिया/23