चौहटा में पादुका/पातका
चौहटा में सभी का ध्यान लगभग 3 फुट ऊंचे चौकोर स्थल की ओर अनायास ही चला जाता है। मंडी वाले इसे टारना माता के चरण या पादुका कहकर पूजते हैं और यहां से गुजरने वाले अधिकांश श्रद्धालु इसकी वंदना करके ही आगे बढ़ते हैं। पादुका में शेर व दो पांव के निशान तथा मध्य में त्रिशूल बना है।वस्तुतः यह अपने प्राचीन स्वरूप में पत्थर पर बना हुआ यहां पर विद्यमान था। लेकिन 3 वर्ष पहले जब चौहटे का पुनरुद्धार किया गया तो इसके प्राचीन स्वरूप के उपर संगमरमर से वही अनुकृति लगाई गई है। लेकिन मूल धरोहर उसके नीचे दबा दी गई जो कि बहुत ही दुख:द है। अलबत्ता चारों तरफ टाइल्स लगाने से यह देखने में आकर्षक लगती है। लेकिन साथ लगता टेलीफोन का खंभा नासूर की तरह इसकी सुंदरता को ग्रहण लगाता आ रहा है।नगर में किसी भी शादी की वर यात्रा इसकी परिक्रमा किए बिना पूरी नहीं मानी जाती। दूल्हे की पालकी जब इस पातके की परिक्रमा करती है तो इस पर पैसे चढ़ाए जाते हैं।यह प्रथा पता नहीं कब से चली आ रही है, लेकिन यह हमारे डीएनए में रच बस गई है।
सोशल मीडिया में हमें एक फोटो मिला है जो एक जनवरी 1904 को लिया गया था उसमें वर्तमान स्थान से थोड़ा दूरी पर पत्थरों का एक थोड़ी सी ऊंचाई तक बना निर्माण दिखता है। जो शायद यही पातका है।पत्थर फैले हुए हैं ऐसा प्रतीत होता है कि इनको इकट्ठा करके व्यवस्थित करके पत्थरों का पक्का निर्माण कर इनको बाद में मौजूदा स्थल तक लाकर बनाया गया है।
मोतीराम ठेकेदार:
खोजबीन करने पर पता चला कि खत्री समुदाय के मोतीराम ठेकेदार ने रियासत काल में इसे बनाया था जिनका घर चंद्रलोक गली में मानगढ़ बिल्डिंग के सामने बाबू ओम चंद जी के घर के पड़ोस में था।प्रसिद्ध लेखक पिनाक पाणी धौण ने 'सुधारक दर्पण' नामक पुस्तक में पातके का जिक्र किया है और लिखा है कि पातके पर खतरी समुदाय में होने वाली शादीयों की वर यात्रा में कितने पैसे चढ़ाए जाने चाहिए।mandipedia/23