पड्डल सस्पेंशन ब्रिज
पड्डल जाने के लिए ऐतिहासिक पुल को जब हम लोग पार करने लगते हैं तो सुकेती खड्ड में नीचे देखने पर कटे पत्थरों से निर्मित एक विशाल ढांचा आज भी खड़ा नजर आता है। जिस पर अब सीवरेज पाइप लाइन गुजारने के लिए उसे आधार बनाया गया है। इससे कुछ दूरी पर पहले दो ढांचे इससे छोटे, आड़े तिरछे पानी में डूबे दिखते थे जो भारी बाढ़ के कारण बह गए थे।बचपन में यह स्तंभ देखकर ऐसा लगता था कि यहां पहले कभी पुल होगा लेकिन कोई यह नहीं बता पाता था कि इसका क्या इतिहास रहा होगा।
खोज करने पर पता चला कि वर्तमान में जो पड्डल पुल है उससे पहले यहां दाईं ओर थोड़ा नीचे कभी लोहे का सस्पेंशन ब्रिज हुआ करता था जिसका एक पिलर आज भी नजर आता है।सस्पेंशन पुल बनने के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है। हिस्ट्री में जिक्र आता है कि सन् 1894 में सर डेनिस फिट्जपैट्रिक, लेफ्टिनेंट गवर्नर जब मिस्टर समिथ कमिश्नर के साथ कुल्लू से मंडी आए तो उनका बड़ा स्वागत सत्कार हुआ और उनका काफिला पड्डल में रुका जहां उनके रहने के विशेष इंतजाम किए गए थे। तब राजा बिजै सेन ने (1851-1902) नया लोहे का सस्पेंशन पुल सुकेती खड्ड पर बनवाया था।
सर डेनिस फिट्जपैट्रिक ने तब मंडी आगमन पर सुकेती खड्ड पर नवनिर्मित लोहे के सस्पेंशन ब्रिज का उद्घाटन किया था और उनके सम्मान में इस लोहे के झूला पुल का नामकरण किया गया था।उससे पहले यहां कोई पुल विद्यमान नहीं था। वर्ष 1921 में राजा जोगिंदर सेन के राजकाल में इस लोहे के सस्पेंशन ब्रिज को हटा कर पत्थरों का पक्का पुल, जिसे हम सभी पड्डल पुल के नाम से जानते हैं, का निर्माण किया गया था जो आज भी वक्त के थपेड़ों को सहता हुआ शान से खड़ा है।पहले मंडी से कुल्लू जाने के लिए समुद्र तल से 2788 मीटर की ऊंचाई पर स्थित दुलची पास से होकर जाना पड़ता था इस सड़क का निर्माण राजा बिजै सेन ने करवाया था जो बजौरा में जाकर मिलता था।mandipedia/23