शहर में कुछ ऐसे स्तंभ, निशानियां या निर्माण होते हैं जो सदा के लिए अपनी अभूतपूर्व संरचना व डिजाइन के कारण इतिहास में अंकित हो जाते हैं। इनमें से घंटाघर के रूप में विख्यात खूबसूरत निर्माण शहर के मध्य में संकन गार्डन में मंडी के अंतिम शासक राजा जोगिंदर सेन ने करवाया था। जिसका उद्घाटन वर्ष 1939 को किया गया था। निर्माण शैली अपने में अद्वितीय है और पैगोडा स्टाईल का शिखर बरबस ही हमें जापानी या चाईनीज पैगोडा स्टाईल की ओर ध्यान खींच लेता है। घंटाघर में इंग्लैंड से लाई गई घड़ी को स्थापित किया गया था जो चारों तरफ एक बराबर समय बताती थी जिससे प्रत्येक घंटे पर आवाज गूंजती थी जिसे स्थानीय भाषा में आज भी 'टणाका' कहकर याद किया जाता है। नगर वासियों के लिए यह आवाज उनके जीवन को अनुशासित करने के लिए बहुत रोल निभाती थी। इस घड़ी को रोज चाबी भरने के लिए कर्मचारी नियुक्त किया जाता था और कुछ वर्षों तक नगर नगरपालिका से भी एक कर्मचारी रोज प्रातः इसमें चाबी भरता था और यह सुचारू रूप से चलती रही। लेकिन इसमें कई बार तकनीकी खराबी आई और स्थानीय प्रशासन,नगर पालिका ने कई बार इसको ठीक कराने के प्रयास किए। दो वर्ष पूर्व मोटर मैकेनिक सनी ने इसको अपने अद्भुत कौशल से पुन:ठीक कर दिया था।लेकिन आवश्यक कल पुर्जों के अभाव में यह कई बार बीच में सही समय बताना छोड़ देती है।
आपके मन में यह जिज्ञासा तो रहेगी ही कि आखिर इसका निर्माण राजा ने किसके माध्यम से करवाया होगा । यह पढ़कर आप सभी को प्रसन्नता होगी कि रियासत कालीन उस समय के सबसे बड़े प्रसिद्ध ठेकेदार हेमप्रभ कपूर जी ने इसे निर्मित किया था। ज्ञात रहे कि हेमप्रभ जी के वंशज भूतनाथ बाजार में बालक रूपी मंदिर से आगे खत्री सभा की ओर जाने वाली गली में लगभग 30 कदम की दूरी पर एक बड़े घर में रहते हैं। उनका पोता जिसे नगर भरत कपूर(गोल्डी) के नाम से जानता है आज ठेकेदारी के कार्य में अपने दादा के पद चिन्हों पर चलकर शिखर की ओर अग्रसित है।
हेमप्रभ कपूर जी ने रियासत काल में और भी कई महत्वपूर्ण निर्माण किए जिसमें नगर की पानी वितरण की सारी स्कीम व चौहटे का निर्माण प्रमुखता से गिना जा सकता है। पंजाब पीडब्ल्यूडी विभाग के ठेकेदार के रूप में हेमप्रभ जी ने बहुत नाम कमाया और मंडी से पंडोह तक के सड़क पुल इत्यादि का भी निर्माण किया। आपने प्रारंभ में अध्यापन का कार्य किया तत्पश्चात अपने घर के नीचे सर्राफ की दुकान भी कुछ समय तक चलाई थी।
आशा है कि जब भी आप घंटाघर को देखेंगे तो आदरणीय हेमप्रभ ठेकेदार जी को भी याद करना नहीं भूलेंगे जिन्होंने मण्डीनगर को वास्तुशिल्प की यह अद्भुत व बेमिसाल कारीगरी दी है जिसे जमाना सदियों तक याद रखेगा।
:हमारे मित्र अजय कौशिक ने घड़ी के अंकों की ओर ध्यान दिला कर प्रश्न किया है कि इसमें चाइनीज अंकों वाले डायल लगी घड़ी का प्रयोग क्यों किया गया होगा। जबकि रोमन अंक वाले डायल, अंग्रेजों के समय में उनकी घड़ियों पर आम लगे होते थे। खोज का विषय है। क्या यह घड़ी पहले कहीं और जगह लगी थी?