मंडी कॉलेज के शुरू होने की गाथा बहुत ही रोचक है।इस बारे में कॉलेज के प्रथम सत्र के छात्र श्री मनोहर लाल गुप्ता जी जो अब 90 वर्ष के हो चुके हैं, से संपर्क किया गया। गुप्ता जी सहायक आबकारी एवं कराधान अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे और बाद में आबकारी मामलों की वकालत एक्साइज एंड टैक्सेशन कमिश्नर व टैक्स ट्रिब्यूनल शिमला में करते रहे। उनसे जब पुरानी बातें हुई तो जानकारियों का खजाना सामने आया। यह रोचक जानकारी उन्हीं के ही शब्दों में ज्यों का त्यों पेश की गई है।
गुप्ता जी बताते हैं कि, "स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब हिमाचल अस्तित्व में आया तो उस समय धर्मशाला में इंटरमीडिएट कॉलेज होता था इसके अलावा कहीं पर भी कोई कॉलेज नहीं था। 15 अप्रैल 1948 को जब वल्लभ महाविद्यालय कॉलेज खोलने की घोषणा की गई। कॉलेज का अपना कोई भवन नहीं था अधोसंरचना नहीं थी। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। साधनों का अभाव था तो स्थानीय प्रशासन ने निर्णय किया कि बिजे हाई स्कूल में इवनिंग कॉलेज के रूप में कॉलेज शुरू किया जाए। तत्पश्चात प्रिंस ऑफ सुकेत को पढ़ाने के लिए जो अध्यापक जी. एल. शर्मा जी नियुक्त किए गए थे उन्हें कॉलेज का प्रथम प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। कॉलेज में छात्रा क्रांति गुप्ता ने सबसे पहले एडमिशन ली जिनका रोल नबर एक था (जो बाद में मशोबरा में वेलफेयर विभाग के द्वारा संचालित बालिका आश्रम से बतौर सुपरिंटेंडेंट रिटायर हुई थी)।रोल नंबर दो मेरा था। मैं प्रिंसिपल साहब के दफ्तर में जब गया तो मुझे देखकर बहुत प्रसन्न हुए और मुझे वहां क्लर्क की कुश्ती कुर्सी पर अनऑफिशियली सहायता करने के लिए बिठा दिया। क्योंकि कॉलेज में कोई स्टाफ नहीं था। तो मेरे बाद जो भी छात्र एडमिशन लेने आए उनकी रजिस्ट्रेशन का काम मैंने ही किया । और इस तरह कॉलेज प्रारंभ होने पर मैने भी अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है। बिजे हाई स्कूल के गेट के सामने हाण्डा परिवार की बिल्डिंग थी जिसमें सेठी नाम का व्यक्ति बतौर किराएदार रहता था।इस भवन के कुछ हिस्से को हॉस्टल के रूप में प्रयोग में लाया गया। श्री बी.आर.भारद्वाज जी को हॉस्टल वार्डन नियुक्त किया गया।तथा हॉस्टल सुचारु रूप से चलाने के लिए आदरणीय भारद्वाज जी के साथ मुझे सहयोग करने के लिए कहा गया। मैं फिर उनके साथ बाजार गया तथा हॉस्टल मैस के लिए बर्तन व चारपाई चौहटा बाजार से खरीदी। और इस तरह से हॉस्टल मैस शुरू किया गया। मैं उस समय अपने मामा श्री बृजलाल गुप्ता जी के घर महाजन बाजार में रहता था। इतिहास के लेक्चरार पालमपुर निवासी श्री बी.आर. भारद्वाज थे इन्होंने हिस्ट्री, इंग्लिश और इकोनॉमिक्स भी पढांई । बाकी अब पुराने लेक्चरार के नाम याद नहीं आ रहे। किन्नौर व आसपास के लड़के पढ़ने के लिए पटियाला जाते थे कई होशियारपुर जाते थे तथा मण्डी नगर के धनाढ्य परिवारों के बच्चे लाहौर में आगे की पढ़ाई के लिए चले जाते थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात मंडी राजा की फौज के 300 सिपाही भारतीय फौज में शामिल कर लिए गए क्योंकि तब अंग्रेजों ने राजाओं को पहले से अपने सिपाही रखने की परमिशन दे रखी थी। मंडी राजा ने पड्ल में लंबी बैरक इनके रहने के लिए बना रखी थी। जब वह खाली हो गई तो बिजै हाईस्कूल से कॉलेज पडल शिफ्ट कर दिया गया और बैरक के कमरों में चूना व साफ सफाई करके उन्हें बैठने व पढ़ने लायक बनाया गया। तथा एक अलग बिल्डिंग में प्रिंसिपल का दफ्तर बना। कॉलेज इवनिंग के बजाय अब डे कॉलेज बन गया तथा सेठी की बिल्डिंग से कॉलेज का हॉस्टल भी पडल आ गया। लगभग 60-65 लड़के लड़कियां कॉलेज में उस समय 11वीं कक्षा में पढ़ते थे जिनमें केवल 2 लड़कियां थी। उनमें से एक नागेश्वरी थी जो बाद में ज्वाइंट डायरेक्टर सेकेंडरी एजुकेशन के पद पर से रिटायर हुई थी। जो गोहर की रहने वाली थी और बाद में जिन्होंने अपना घर पैलेस कॉलोनी में बनाया।और रोल नंबर 1 वाली छात्रा क्रांति गुप्ता वेलफेयर विभाग के मशोबरा कार्यालय से बतौर सुपरिंटेंडेंट सेवानिवृत्त हुई थी।सर्दियों में जब लड़कियां धूप में बैठती थी तो लड़कों की उनसे बात करने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि उस समय का सामाजिक परिवेश ऐसा था की लड़के लड़कियों का सबके सामने खुलेआम बात करना अशोभनीय माना जाता था।
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कॉलेज का अपना ड्रामाटिक क्लब भी था जिसमें मैं भी शामिल होता था तथा पहली बार दरबार हॉल जहां आजकल हेड पोस्ट ऑफिस है उस हेरिटेज भवन में शिवरात्रि के मेले के दौरान मार्च 1951 को हमने भारत रमानी नाम से एक नाटक का मंचन किया था जिसे देखने के लिए मंडी नगर के सभी संभ्रांत लोग आए थे और फिर हमारा एक ग्रुप फोटो भी लिया गया था। (मंडीपीडिया पर दरबार हाल में नाटक मंचन लिंक पर देखें।)पाकिस्तान बनने पर लाहौर से खत्री समुदाय के 18 लड़के पढ़ने के लिए कॉलेज में आए। होशियारपुर से भी कुछ छात्र पढ़ने के लिए आए जिन्होंने तेहरवीं क्लास में एडमिशन ली। डॉ हर्ष मल्होत्रा जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार उनके पिता श्री दिवंगत श्री महेश प्रसाद मल्होत्रा जी जब होशियारपुर से मंडी आए तो तेहरवीं कक्षा के प्रथम बैच में उन्होंने प्रथम रोल नंबर से एडमिशन मंडी कॉलेज में ली थी।)पुराने छात्रों में महेंद्र लाल वैद्य का नाम मुझे अभी तक याद है। और इस तरह हम लोगों ने कॉलेज से अपनी पढ़ाई की। और यह बड़े गौरव की बात है कि हमारा यह कॉलेज बाद में सारे हिमांचल में एक प्रतिष्ठित कॉलेज के रूप में प्रसिद्ध हुआ।यहां से सैंकड़ों छात्र पढ़ कर सरकारी नौकरी में उच्च पदों पर आसीन हुए और अपने कॉलेज का नाम रोशन किया । "
साल 1952 में कॉलेज का प्रथम बैच ग्रेजुएट होकर निकला। हालांकि लाहौरर से आए छात्रों ने तेरी क्लास में एडमिशन ली थी वह पहले ग्रेजुएट बने लेकिन सही मायनों में कॉलेज की शुरुआत वाला प्रथम ग्रेजुएट बैच हमारा ही था। कॉलेज के हॉस्टल में जो छात्र विद्याध्ययन करने के लिए रहते थे उनका ग्रुप फोटो अभी भी मेरे पास सुरक्षित है जो पीपल के वृक्ष के पास लिया था जो आज भी कॉलेज कैंपस में शान से खड़ा है।
गुप्ता जी जो सुपर सीनियर सिटीजन होते हुए भी पतंजलि योग केंद्र हरिद्वार से योग के प्रशिक्षक के रूप में ट्रेनिंग लेकर निकले और कई वर्षों तक शिमला में योग सिखाया।जो छात्र विद्याध्ययन करने के हास्टल में रहते थे उनका ग्रुप फोटो अभी भी मेरे पास सुरक्षित है जो पीपल के वृक्ष के पास लिया था जो आज भी कॉलेज कैंपस में शान से खड़ा है।
बिजै हाई स्कूल में ही इवनिंग कॉलेज के रूप में हमारी पहले साल की कक्षाएं कुछ महीने तक चली थी। इस तरह से हम कह सकते हैं कि वल्लभ महाविद्यालय की शुरूआत भी बिजै हाई स्कूल के भवन से ही हुई थी जिसके नाम में कुछ वर्ष बाद बदलाव करके इसे वल्लभ गवर्नमेंट कॉलेज मंडी कर दिया गया था।"वल्लभ महाविद्यालय खोलने के पश्चात बंद होने के स्थिति में जब आया तो इसे कैसे बचाया गया? इसका वृतांत पढ़ें l
Lest we forget by Sh. Harsh Oberoi in Guest article on mandipedia.com