सर्दी का जन्म-(सेड़ा)
हमारे बुजुर्ग प्रकृति का कितनी गहराई सेअध्ययन करते थे इसके कई उदाहरण मिल जाएगे। सर्दी का जन्म कब होता है हमने तो कभी इस बारे में सोचा तक नहीं। जब शरीर को सर्दी लगी तो सर्दी का मौसम मान लिया।
मण्डी के परिप्रेक्ष्य में माताश्री श्रीमती नैना देवी बहल जी से एक नई बात का पता चला। उन्होंने बताया कि सर्दी का जन्म वस्तुत रक्षा-बन्धन से होता है जिसे मण्डयाली में "सुडुनु कहते थे। दूसरा चरण जन्माष्टमी को आता है जिसे 'जाँड्डु' नाम से पुकारा गया। तीसरी स्थिति सायर को बनी जिसे 'सायरू' नाम दिया गया। अगला चरण दीपावली को आता है जिसे 'दयाडु' के नाम से पुकारते थे।इन सभी को सर्द ऋतु के चार भाई भी कहा जाता है। हम सभी आजकल वातावरण में प्रातः सांय हल्की हल्की ठंडक अनुभव करने लगे हैं। प्रकृति को लेकर बुजुर्गों का यह अध्ययन वाकई ही प्रशंसा योग्य है।