नगर के अधिकांश पुराने घरों में रियासत के समय से ऐसी देवदार की लकड़ी से बनी रेलिंग ज जिन्हें स्थानीय बोलचाल की भाषा में बिड़ंग कहते थे, आम देखने को मिल जाती थी। हमने 60 वर्ष पहले की अवधि में भी इनको बनाते हुए देखा है। जब घर में लकड़ी का मिस्त्री एक स्टैंड बना कर के उसमें कलात्मक ढंग से डिजाइन बना करके, इनको बहुत ही बारीकी से और सफाई से,एक पांव चलित पैडल से खड़ी लंबी आरी से लकड़ी को काटकर बनाता था।काफी समय इनको बनाने में लग जाता था।
समय के साथ लोगों की सोच में बदलाव हुआ। कई जगह लकड़ी के सड़ने के कारण और कई जगह इनके प्रति विशेष रूचि ना होने के कारण जब नए निर्माण होने लगे तो इनका स्थान ईंट व पत्थरों ने ले लिया। उससे पहले मंडी में ईंटो का निर्माण ना के बराबर होता था। क्योंकि ईंटे बनाने के लिए उस समय आसपास भट्टे नहीं होते थे और नाही लोगों के पास इतने साधन होते थे कि बाहर से ईंटे मंगवाई जाए। स्थानीय स्तर पर ही घर बनाने की सामग्री आराम से मिल जाती थी। देवदार की लकड़ी आसानी से उपलब्ध होने के कारण इस तरह बहुत ही कलात्मक शैली के बने हुए यह बिड़ंग समय के साथ विलुप्त होते चले गए। अब आपको नाम मात्र घरों में ही ऐसी रेलिंग देखने को मिलेगी।
अलबता सरकारी स्तर पर इन को बचाने का प्रयत्न अवश्य हुआ है।यदि आप चौहटा में खड़े होकर इमर्शन भवन की ऊपर की मंजिल जहां न्यायालय बने हैं, की तरफ नजर दौड़ाएं तो वहां पर आपको अभी भी लंबाई में यह रेलींग दिख जाएंगी। इस भवन को हिमाचल सरकार द्वारा धरोहर भवन के रुप में घोषित किया जा चुका है इसलिए आशा रखते हैं कि यह कलात्मक रेलींग भविष्य में लंबे समय तक वर्तमान स्वरूप में सुरक्षित रहेगी। Mandipedia/23