घर घर में हुक्का
रियासत कालीन मण्डी में प्राय सभी घरों में हुक्का जरूर रखा होता था और घर का बुजुर्ग तंबाकू पीने का आदी होता था। अतिथि के आने पर उसे हुक्का पेश किया जाता था। बुजुर्ग प्राय: कटोरी में तंबाकू डलवाने के लिए घर के बच्चों और यहां तक की महिलाओं को भी आदेश देकर के भरवाते था। उन दिनों घरों में चूल्हे में लकड़ी जलाई जाती थी। उसी पर ही खाना बनता था तो चूल्हे की आग कभी शांत नहीं होती थी।चुल्हे की राख में लकड़ी का छोटा सा मोटा टुकड़ा जलता हुआ दबाया जाता था।राख से दबे होने से उसे धुआं नहीं निकलता था।लेकिन उसके अंदर अंगार बना रहता था जिसे स्थानीय भाषा में म्याड़ठ्ठु कहते थे।इस तरह कटोरी में तंबाकू डालकर ऊपर से पर्याप्त जले कोयले उपलब्ध हो जाते थे। कई युवा तंबाकू भरने के लिए खुश रहते थे और कभी-कभी कटोरी में नीचे से चिलम की तरह दोनों हाथ इकट्ठा कर कश(सटाका) लगा लेते थे।
मनोहर हलवाई की दुकान से थोड़ा आगे सेरी बाजार में 'चूड़ामणि तंबाकू वाले' की दुकान होती थी। और भी दुकाने थी जहां से प्राय: बुजुर्ग लोग तंबाकू मंगवाते थे और स्वाद के हिसाब से फीका,कड़वा या दोनो का मिश्रित रुप कहकर दुकानदार से खरीदते थे।
सुबह के समय घरों में कांसे से बने हुक्के को मांज कर चमकाया जाता था और पुराना पानी जो लाल रंग का हो चुका होता था, उसे बदलकर साफ पानी भरा जाता था।नली को साफ करने का भी एक विशेष तरीका होता था।एक लंबी पतली लोहे की लगभग 2 फुट की तार जिसके ऊपर पकड़ने के लिए गोल सा हैंडल बना होता था, उसे चूल्हे में लाल करके लकड़ी की नली में डालकर के ऊपर नीचे करके चलाते थे तो इससे नली के अंदर जमे हुआ तंबाकू के अवशेष जल जाते थे और उस से धुआं निकलता था और एक विशेष प्रकार की तंबाकू की गंध वातावरण में फैल जाती थी।और इस तरह नली साफ हो जाती थी। जलते कोयले को डालने के लिए एक छोटी सी चिमटी जंजीर के साथ हुक्के की कली से बंधी रहती थी।बचपन में इस सारी प्रक्रिया को बड़े चाव से देखते थे। कहते हैं कि आयुर्वेद मे हुक्के के लाल रंग के पुराने पानी का आयुर्वेदिक दृष्टि से भी प्रयोग होता था। घर में कई बार काम करने वाले हुक्का पीना चाहे तो बुजुर्ग लोग उनको कटोरी निकालकर अलग से देते थे लेकिन अपनी नली से मुंह लगाने की इजाजत उन्हें नहीं होती थी।
अमीर लोगों के घरों में हुक्के काफी कलात्मक ,आकर्षक व काफी महंगे बनके आते थे जिनके पीने की नली भी विशेष कलाकारी लिए होती थी।लेकिन अन्य परिवारों में यह बहुत साधारण और परंपरागत रूप से छोटे साइज के देखने को मिलते थे।
इस चित्र में दिखाए गया हुक्के का फोटो हमें भगवाहन में स्थित 'जरौअरा रा घर' से प्राप्त हुआ हैं।यह लगभग डेढ़ सौ साल पुराना हुक्का है और दिवंगत सुंदर गोयल एडवोकेट जी के पिताश्री लाला श्याम लाल झूंगी में अपने बागीचे में प्रयोग करते थे।
अब यह हुक्के इतिहास बनकर रह गए हैं।कहीं तो कई घरों में ये ड्राइंग रूम की शोभा बने हैं तो कईयों के हुक्के स्टोर (टाहड़ा) में रखे मिलेंगे। mandipedia/25