Posted on 11-07-2023 08:07 AM
टारना में महामहिम दलाई लामा जी का आदर सत्कार।
महामहिम जी के सत्कार का एक दृश्य। साथ में पंचन लामा जी भी हैं।
महामहिम दलाई लामा जी,पंचन लामा जी व प्रशासनिक अधिकारिगण
उद्घाटन पट्टिका 7 जनवरी 1957
जब आप सड़क के द्वारा टारना मंदिर के गेट के पास ऊपर पहुंचते हैं तो कुछ सीढ़ियां चढ़ने के पश्चात गेट के दाएं ओर आपको एक छोटा सी उद्घाटन स्मारिका नजर आएगी जिसमें महामहिम दलाई लामा जी का नाम अंग्रेजी में लिखा है जिसके नीचे तारीख पड़ी है 7 जनवरी 1957। जिज्ञासा होनी स्वाभाविक ही है कि इस तारीख पर यहां क्या आयोजन किया गया होगा।
छानबीन पर पता चला कि महामहिम जी वर्ष 1957 में टारना मंदिर आए थे।ज्ञात रहे कि बौद्ध धर्म वाले टारना माता के प्रति विशेष श्रद्धा रखते हैं और इसे तारा देवी बोधिसत्व के रूप में मानते हैं जिस बारे में शास्त्रों में भी आपको ढेरों उल्लेख मिल जाएगा।
जहां पर आजकल आपको दूरदर्शन के अपलिंकिंग टावर का कार्यालय दिखाई देता है, उसके साथ ही नीचे एक विशाल लान के साथ एक और छोटा ढांचा दिखेगा जो आज जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। महामहिम जी मण्डी राजा जोगिंदर सेन जी के
अतिथि भी रहे हैं और तब उन्होंने खुआ रानी मंदिर में जाकर दर्शन किए थे जिन्हें बुद्ध धर्म वाले अपनी कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं।
यह कभी मंडी राजा का रेस्ट हाउस हुआ करता था और कहते हैं कि महामहिम जी का आदर सत्कार इसी रेस्ट हाउस में किया गया था।अब तो यह केंद्रीय सरकार की संपत्ति है और सूचना व प्रसारण मंत्रालय के अधीन है। आजकल टारना में जहां आपको गार्डन देखने को मिलेगा इसे रानी अमृत कौर पार्क के नाम से जाना जाता है जिसका उद्घाटन महामहिम जी के कर कमलों से हुआ था।
दोनों फोटो:किशोर शर्मा(जौली बॉस)
सत्कार करते समय मंडी के स्थानीय लोग भी शामिल हुए थे जिनमें से हमें स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह बहल के बारे में जानकारी मिली।टारना जाते समय आईपीएच के पुराने कार्यालय के दूसरी तरफ बहल जी की बहुत ही खूबसूरत कॉटेज नुमा रिहाईश थी जो अभी भी थोड़े संवर्द्धित रूप में विद्यमान है।बहल जी नगर की प्रतिष्ठित शख्सियत थी और ए क्लास ठेकेदार हुआ करते थे तथा राजनीतिक रूप से भी इनका काफी बड़े लोगों से उठना बैठना होता था और नगर में इनकी काफी जान पहचान थी।
ठेकेदार श्री गुलाब सिंह बहल
मौजूदा पोस्ट के बारे में हमें बहल जी के पुत्र नवीन बहल से यह जानकारी मिली है जोकि आप सभी को पसंद आएगी इसके लिए मंडीपीडिया उनका आभारी है।
नवीन बहल
टी-सेट जिसमें महामहिम जी को चाय सर्व की गई थी।
महामहिम जी के सत्कार के समय उन्हें जिस चाय सेट से स्थानीय प्रशासन द्वारा चाय पान कराया गया था वह सेट गुलाब सिंह जी के परिवार के पास अभी भी संभाल कर एक धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा है।स्थानीय प्रशासन के द्वारा बाद में चैरिटी के लिए कुछ वस्तुओं की सार्वजनिक नीलामी की गई थी और इनमें से एक यह टी-सैट भी था जिसे गुलाब सिंह बहल जी ने धरोहर के रूप में अधिकतम बोली देकर लिया था।इस पर बहुत ही सुंदर व अद्भुत बारिक कलाकारी हुई है व तिब्तियन कला की छाप स्पष्ट नजर आती है।और यह घर के ड्राइंग रूम के एक कोने में अभी भी रखा है। जिसका प्रयोग महामहिम जी के प्रस्थान करने के पश्चात कभी नहीं हुआ लेकिन उसको संभाल कर रखने के लिए धरोहर प्रेमी नवीन बहल जी का परिवार प्रशंसा का अधिकारी है।और बाकी लोगों के लिए भी यह प्रेरणादायक है कि किस तरह हमें अपने घर में रखी पुरानी वस्तुओं को विरासत के तौर पर संभाल कर रखना चाहिए जो कि अपने आप में एक कहानी बयां करती हैं।
90 के दशक में महामहिम जी पुन: मंडी आए थे और सेरी मंच पर आपने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित किया था और तब बाबा कोट भवन की ओर इशारा करते हुए अपनी पुरानी यादों को ताजा किया था और कहा था कि जब मैं यहां पहले आया तब भी यह ऐसा ही था जैसा आज है।(इस संबोधन को पोस्ट के लेखक ने भी सुना था)। mandipedia/23
रिहाईश।
फोटो: साभार नवीन बहल
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रिवालसर का कार्यक्रम
मण्डी के पश्चात महामहिम दलाई लामा जी व पंचनलामा रिवालसर गए थे जिस बारे में हमें वहां का वृतांत परम आदरणीय श्री हर्ष ओबराय जी ने शेयर किया है जो अक्षरश: यहां पर उद्धृत कर रहा हूं;
"मुझे याद है जब दलाई लामा व पंचन लामा 1957 में आए थे तो शामियाना लगाकर रिवालसर में दोनो ने तिब्बती समाज के लोगों को सम्बोधित किया था तथा उपराज्यपाल श्री बजरंग बहादुर सिंह तथा राजा जोगिंदर सैन जी भी उपस्थित थे।क्योंकि पिताजी उस समय उपराज्यपाल के सचिव थे तो हमारा परिवार भी साथ था। उनकी तिब्बत वापसी के बाद कुछ अन्तराल के बाद ही तिब्बत पर चीन का आक्रमण हुआ।दलाई लामा तो बचकर भारत आ गए पर पंचन लामा को अपहृत करके शायद कैद कर लिया गया या हत्या कर दी गई।"
श्री हर्ष ओबरॉय