मण्डी में सदियों से पक पकवान बनाने व खाने-खिलाने की परंपरा चली आ रही है। अब तो कुछ पकवान नियमित रूप से बाजार में भी मिलने लगे हैं और हालात यह हैं कि कई बार तो अग्रिम बनाने का ऑर्डर बुक करना पड़ता है। मंडीपीडिया का प्रयास है कि मंडी के पारंपरिक पकवानों के बारे में पाठकों को नियमित रूप से बताया जाए। हमने मण्डी की प्रसिद्ध साहित्यकार, धरोहर प्रेमी व इंटेक मंडी चैप्टर की सक्रिय सदस्या तथा वर्तमान में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत श्रीमती मीनाक्षी मीनू से बतौर गेस्ट लेखक मंडीपीडीया के लिए धारावाहिक रूप से मंडी के पकवान व यहां की भोजन शैली के ऊपर नियमित रूप से लिखने के लिए विशेष रूप से आग्रह किया था। जिसे मीनू जी ने स्वीकार किया है हम उनका आभार प्रकट करते हैं। मण्डी की समृद्ध 'फूड हेरिटेज' की श्रृंखला में प्रथम कड़ी में बाबरू के ऊपर यह लेख पोस्ट किया जा रहा है।
बाबरू-1
छोटी काशी मंडी में त्यौहारों के समय या शुभ अवसर पर विशेषकर जन्मदिन पर भल्ले- बाबरू बनाये जाते हैं। इस कड़ी में पहले आपको बाबरू के बारे में कुछ बताती हूं; बाबरू बनाने के लिए सर्वप्रथम गेहूं के आटे का घोल बनाया जाता हैं उस घोल में चीनी स्वादानुसार तथा पिसी हुई मीठी सोंफ मिलायी जाती हैं। तत्पश्चात उस घोल को थोड़ी देर ढक कर रख देते हैं । उसके बाद बाबरू बनाने के लिए हमें तवी (जो कड़ाई का ही एक रूप होता हैं लेकिन कड़ाई का तला गोल होता हैं और तवी का समतल ) की जरूरत होती हैं जिसमे बाबरू समान रूप से फैल सके । तवी में घी ज्यादा डाला जाता हैं ताकि बाबरू उसमे तल सके । जब घी सामान्य तापमान पर गर्म हो जाए तब एक कटोरी ले कर उसमें घोल भरे और तवी में धीरे धीरे एक ही जगह डाल दें घोल खुद ही एक गोल आकार ले लेता हैं और थोड़ी देर में बाबरू घी में तैरने लगता हैं तब उसको आराम से चिमटे की मदद से पलट दिया जाता हैं । एक बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं कि बाबरू तेज़ आंच पर नहीं पकाये जाते । मंडी में बाबरू को उड़द के बने भल्लों के साथ ही खाया जाता है और साथ में दही मिल जाए तो स्वाद के क्या कहने। जिस बारे में अगली पोस्ट में बताया जाएगा। बाबरु के कई अन्य प्रकार भी होते हैं। नमकीन बाबरू भी घरों में बनते हैं जिनमें अजवाइन डालने पर स्वाद का अपना ही मजा आता है।
-लेखिका मीनाक्षी कपूर 'मीनू'