भल्ले
भल्ले बनाने के लिए उड़़द ( मंड्याली में माह )की दाल ( माह दली) को रात भर पानी में भिगोकर सुबह दाल को अच्छी तरह से मसलकर धोया जाता हैं
पानी में भीगी हुई दली माश
दाल को हाथ से धोते हुए
जिससे दाल का छिलका उतर जाता हैं। फिर दाल साफ करके उसे पीसा जाता हैं । पीसी हुयी दाल में मसाले (गर्म मसाला ,धनिया ,जीरा,मेथी आदि) अपने स्वादानुसार और हरी मिर्च / लाल मिर्च डाल कर मिला लिया जाता हैं । फिर हाथ में थोड़ी सी दाल लेकर ( चपाती की लोई जितनी ) उसे गोल कर फिर हलके हाथ से दबा कर बीच में ऊँगली से छोटा सा छेद किया जाता हैं जिससे दाल की लोई की आकृति भल्ले की बन जाती हैं फिर उन्हे हरे धनिये की पतियों से सजा कर किसी भी कपड़े आदि पर या (सूप या चंगेर्)पर इस तरह से सभी भल्ले बना कर रख दिये जाते है । ज्यादातर रात को भल्ले बनाकर ( घड़ी कने ) रख दिये जाते हैं
तलने के लिए रखे भल्ले
और सुबह उनको सामान्य आंच पर घी में सुनहरा होने तक तला जाता हैं। तलकर तुरंत उन्हे नमक मिले पानी में डाला जाता हैं और थोड़ी देर में निकाल दिया जाता हैं । इस तरह छोटी काशी मण्डी में भल्ले बनाये जाते हैं । प्राय: बाबरू भल्ले घरों में इकठ्ठे ही बनते हैं और उनको साथ साथ खाने का अपना ही मजा है। दही साथ मिल जाए तो आप दुगना खाएंगे,इस बात की गारंटी है।
विशेष:ब्याह शादी व अन्य शुभ कारज में बाबरू व भल्ले बड़े आकार के बनाये जाते हैं जो यहाँ की पारम्परिकता को एक अनूठे रूप में (प्राचीन ) स्वयं में समेटे हुए नज़र् आता हैं। अब तो अधिकांश अवसरों पर बड़े आकार के बाबरू-भल्ले आर्डर देकर बाजार में ही बनवाये जाते हैं। बाबरू भल्ले बनाने वालों में पुरानी मण्डी के शर्मा जी व चंद्रलोक गली में बहल दुकानदार काफी प्रसिद्ध हैं इसके खुआ रानी के पास, हेमन्त प्रसाद शर्मा द्वारा बनाए गए भल्ले,बाबरू भी आजकल मशहूर है।mandipedia/2023
-मीनाक्षी कपूर 'मीनू'