मण्डी रियासत के राजगुरु
Posted on 23-08-2023 07:54 PM


                         रियासत के राजगुरु 

जिज्ञासा होना स्वाभाविक है की मण्डी रियासत के राजगुरु कौन रहे होंगे?यदि आप चौहटा से आज की चंद्रलोक गली से होते हुए चबाटा के पास पहुंचेंगे तो जॉनी कचौरी की दुकान के सामने एक बहुत बड़ी चौकी नजर आएगी जिसे मण्डी वासी 'जगदीश परोहता रा घर' कह कर के पुकारते हैं।

बहुत पहले इस घर के पुरखे पुरानी मण्डी में रहते थे।नई राजधानी बनने से पहले पुरानी मण्डी ही राजा अजबर सेन की राजधानी हुआ करती थी लेकिन वहां पर इस घर के पुरखों का कोई इतिहास अब उपलब्ध नहीं है।

पारिवारिक सूत्र बताते हैं कि जब सेन राजवंश पलायन करके मण्डी तक पहुंचा तो साथ में यह परिवार बंगाल से आया था जो मूलत चटर्जी थे और कालांतर में इन्होंने अपने नाम के साथ बीसवीं सदी में शर्मा सरनेम लिखना शुरू किया।इनका कश्यप गोत्र है।

 राजा जालिम सेन(1826-1839)के राजकाल में इनके पुरखे पुरोहित शिव शंकर राजगुरु बने थे। इससे पहले परिवार के कौन राजगुरु बने इसके बारे में पता नहीं चला। पारिवारिक सूत्र के अनुसार यह पद निर्विघ्न राजा बलवीर सेन (1839-1851) के राजकाल में भी रहा।

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पुरोहित शिव शंकर के पुत्र जयकिशन थे और उनके दो पुत्र क्रमशः बजरी दत्त व बगला दत हुए। रियासत कालीन मंडी में पुरोहित बगला दत्त बतौर राजगुरु राजा बिजै सेन (1851-1902) के समय में रहे। इस बारे में हम एक दुर्लभ फोटो मिला है जिसमें बाएं से राजगुरु बगलादत, वजीर जीवानंद राजा बिजै सेन के साथ बैठे हैं बाकी लोगों के नामों का पता नहीं चल सका।

राजगुरु की यह व्यवस्था राजा जोगिंदर सेन के राजकाल में भी जारी रही और इस बारे में सर्टिफिकेट दिनांक 22-4-1938 में भी संदर्भ मिलता है। जो गृह मंत्री, मण्डी स्टेट द्वारा मास्टर ऑफ सेरेमनी को जारी किया गया था जो नीचे फोटो में दिखाया गया है। तत्पश्चात पुरोहित जगदीश्वर दत्त जी को राज दरबार में प्रोटोकॉल के हिसाब से पिताजी की जगह स्थान दिया गया था। तथा इसमें रियासत में होने वाले कार्यक्रमों के लिए ड्रेस कोड के बारे में भी आदेश जारी हुआ है। 

पुरोहित जगदीश्वर दत की एक पुत्री  निर्मला व 4 पुत्र क्रमशः सुरेश्वरीदत्त, मेघेंद्र, हरवंश व जितेंद्र हुए।मेघेंद्र के तीनों भाइयों का स्वर्गवास हो चुका है।

16 जून 1986 को जब मंडी के राजा जोगिंदर सेन का देहांत हुआ तो राज परिवार की आंतरिक व्यवस्था व परंपरा के अनुसार पुरोहित जगदीश्वर दत्त के बड़े पुत्र मेघेंद्र शर्मा को बुलाया था जिन्होंने इस अवसर पर दिवंगत राजा मण्डी के बेटे अशोकपाल सेन को राज तिलक लगाने की परंपरा का निर्वाह किया था। 

 इस परिवार को राज दरबार की ओर से कई स्थानों पर हजारों बीघा की जागीरें दी गई थी और कहते हैं कि गुसाऊं वजीर के पश्चात सबसे अधिक भूमि इसी परिवार के पास थी और उसका राजस्व(मामला) दूसरे नंबर पर भी यही परिवार देता था। अभी भी इस परिवार के पास कई भवन व जमीने कई स्थानों पर है।

ब्यास नदी के किनारे जहां से हनुमान घाट को जाते हैं वहां सिढ़िओं के साथ वाला शिव देवालय इसी परिवार के पुरखे राजगुरु शिवशंकर द्वारा ही बनाया गया था और इस परिवार द्वारा इस मंदिर को बनाए जाने के कारण ही इसे स्थानीय लोग अभी भी 'परोहता रा दवाला' कहते हैं।विनोद बहल/मंडीपीडिया-2023





समस्त फोटो साभार: मेघेंद्र शर्मा

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Anil Sharma
24-08-2023 08:30 AM
बहुत ही दुर्लभ जानकारी दी गई है इस तरह कि जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है, परंतु इच्छा शक्ति से सब कुछ संभव है मंडी पीडिया को साधुवाद
HARSH
24-08-2023 08:38 AM
Very interesting n informative in Mandi State history.
Naveen Kumar Behl
24-08-2023 10:23 AM
Very nice .
Vijay
24-08-2023 03:39 PM
As a native of Mandi we take lots of pride in culture history and traditions of Mandi . We love speaking Mandyali , eating Sepu Wadi Kachori and are worried and sad to see the destruction that monsoon did .. These anecdotes and unknown history is something that we must preserve at all the cost .
Dinesh Behl
24-08-2023 08:43 PM
Indeed a rare post and helps in linking the past of Mandi state
Sanjeev Vaidya
29-08-2023 09:28 AM
Very informative and rare history revealed.Thanks for the information.
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