मण्डी रियासत का खतरी समाज-नाड़ी बैद/वैद्य-1
Posted on 27-09-2023 01:28 PM


                 नाड़ी बैद/वैद्य-1

मण्डी गजेटियर में नगर के खतरी समुदाय की 20 उप-जातियों के बारे में लिखा है जिनमें 'बैद' का भी संदर्भ आता है। हमारे आलेख का विषय रियासत कालीन खतरी समुदाय की उपजाति बैद/वैद्य के ऊपर केंद्रित है।
वैद्य का अर्थः
वैद्य का शाब्दिक अर्थ है, विद्या से युक्त्।वैद्य कुलनाम की तरह भी प्रयोग हुआ है और मण्डी में भी वैद्य को उपनाम की तरह नाम के साथ लिखा जाता है।
रियासतकालीन मण्डी नगर के प्रतिष्ठित वैद्य परिवारों के मुखिया:

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शोध के मुख्य बिन्दुः
1.मण्डी नगर में वैद्य परिवार कब व कैसे तथा कहाँ से आये।
2.वैदयों की चौकीयाँ व वँशावली ।
3.वैद्यों का देव(दयो),कुलदेव-कुल देवी(कुड़ज) तथा गुगा पूजन परम्परा।
4.रियासतकालीन प्रसिद्ध वैद्य व्यापारी व समाज में योगदान।
यह सभी बिंदु आपस में गुँथे हुए हैं अतः आगे इस बारे में उचित स्थान पर संदर्भ दिए जाते रहेंगे।
वैद्यों का मण्डी में आगमनः
हमने शोध का समय सन् 1500 से आगे का चुना है। राजा अजबर सेन द्वारा सन् 1527 में भूतनाथ मँदिर के निर्माण के साथ पुरानी मण्डी से अपनी राजधानी वर्तमान मण्डी में बसाने के प्रमाण मिलते हैं जिनका राज्यकाल सन् 1499 से सन् 1534 तक रहा।
विभिन्न पुस्तकों व ऐतिहासिक ग्रन्थों का अवलोकन करने पर पता चलता है कि आज के महाराष्ट्र व बँगाल में वैद्य परिवार बहुतायत में बसे हुए हैं।जनगणना मेंपश्चिमी बँगाल के नादिया जिले में अधिकांश वैद्य दर्ज हैं और बंगाल से महाराष्ट्र तक फैले हुए हैं। प्राचीन काल में वैद्य अधिकांश कामरूप राज्य के निवासी थे जिसमें वर्तमान पश्चिम बंगाल के उतर पश्चिम/उतर पूर्व और वर्तमान के दक्षिण पश्चिम/दक्षिण पूर्व असम का क्षेत्र शामिल है।हमारा मत है कि इनका आगमन बँगाल के नादिया क्षेत्र के आसपास से हुआ होगा। बंगाल में सामाजिक हालात बिगड़ने लगे तो वैद्य बड़े पैमाने पर प्राचीनभारत के अन्य क्षेत्रों में पलायन कर मालवा क्षेत्र में चले गए।बँगाल, महाराष्ट्र के अलावा कई स्थानों पर नाड़ी बैद व जाति बैद ब्राहम्ण समुदाय में आते हैं।हालांकि मण्डी 'सदर' में इस समूह को खत्री समुदाय के अंतर्गत माना जाता है। सदियों से वैद्यों को दो वर्गों में रखा है, जाति वैद्य और नाड़ी वैद्य। यदि हम हिमाचल के अन्य क्षेत्रों में वैद्यों के बारे में पता करने की कोशिश करें तो मण्डी के अलावा कहीं पर भी वैद्यों के बारे में कोई संदर्भ नहीं मिलता है।लेकिन बैद हमें काफी स्थानों पर मिलते हैं।साहित्य के अनुसार यह नाम वैद्य'वैदिक आयुर्वेद' के प्राचीन विज्ञान से जुड़े रहे हैं, और इस प्रकार वैद्य, वैद, वैदिकी, बैद, बैद्य आदि नाम प्रचलित हैं। वे सदैव शक्तिशाली प्रशासक और जमींदार रहे हैं।उपरोक्त सभी विशेषताएँ मण्डी नगर के वैद्यों में भी देखी जाती हैं।मण्डी में पलायन करके आये वैद्य व अन्य कुछेक खतरी समुदाय स्वयं को बंगाल से आया हआ मानता है? हालांकि वैद्यों का पहला समूह चालुक्य वँश के शासकों के सेना समूह के साथ करनाटक क्षेत्र(पुराना करनाट देश) से उड़ीसा (उत्कल) और राजमुंदरी (राजमहेंद्री-आंध्र)के माध्यम से बँगाल पहुँचा हुआ लगता है।
नीचे दिये गये नक्शे से स्पष्ट होता है कि उतर पूर्व भारत व उतर पश्चिम भारत में वैद्यों ने किस तरह से विभिन्न काल खण्ड में पलायन किया होगा।

कुछ वैद्य बंगाल से चले आये और कुछ ने आयुर्वेद का अध्ययन व अभ्यास किया और बैदगिरी का काम करने लगे।इस कार्य में ज्यादा रुझान इस लिए भी हो सकता है कि एक तो यह पेशा समाज में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था तथा राजदरबार में विशेष स्थान मिलने के कारण दरबार से निकटता रहती थी।
नाड़ी बैद-जाति बैदः मण्डी में दो प्रकार के वैद्य परिवार रहते आ रहे हैं।जिनमें से जो बैदगीरी के काम में थे उनको नाड़ी बैद और बाकियों को जाती बैद कहकर समाज में पहचान मिली हुई है। जाति वैद्यों के बारे में अलग से कहीं कुछ भी पढ़ने को नहीं मिलता।इसमें कोई भी सन्देह नहीं है कि रियासतकाल में जाति बैद और नाड़ी बैद की स्थानीय स्तर पर अलग व स्वतंत्र पहचान थी लेकिन इस बारे में या तो इतिहासकार अनभिज्ञ थे या दोनों उपनाम में उन्हें कोई विशेष अंतर समान उच्चारण होने के कारण नजर नहीं आता था।
नगर में वैद्यों की अलग पहचान जन्माष्टमी मनाने के तरीके से भी परिभाषित होती है। आज भी नगरवासी जब जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं तो वैद्य इस व्रत को अगले दिन ही मनाते हैं (हाँडा(हाड्ड) उपजाति में भी यह प्रथा है) कहते हैं कि जब कृष्ण भगवान पैदा हुये तो वैद्यों को अगले दिन ही पता चला इसलिये वो जन्माष्टमी को अगले दिन मनाते हैं। दूसरी तरफ वैद्य अपनी इस परम्परा का आज भी इसी रुप में निर्वाह कर रहे हैं जो नाड़ी बैद रियासतकालीन समाज में अच्छी तरह से प्रतिष्ठित हो गये थे उनकी अगली पीढ़ी स्थानीय प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो चुकी थी जिस कारण नाड़ी बैद के वंशज होने के कारण इन्हें भी जाति बैद कहा जाने लगा होगा।जबकि वह चिकित्सक के रुप में सेवाएं नहीं दे रहे थे।
वैद्य उपनामःयहां पर लिखना प्रासंगिक होगा कि बीसवीं शताब्दी से पहले नगर में नाम के साथ उपनाम लिखने की परंपरा नहीं थी।उपनाम लिखने के लिए बहुत ही साधारण तरीका उपयोग में लाया जाता था।उदाहरण के लिए विशेष कद्द-काठ्ठी व थोड़ी पतली व लम्बी गर्दन के कारण कुछ लोगों की पहचान लमक्याड़ु के रुप में हुई जो अभी भी यथावत जारी है।किसी के गाँव विशेष से आने पर उसी गाँव के नाम पर पहचान मिली, जैसे दरंग क्षेत्र से आने वाले बहल परिवारों को दरंगवाड़, मेहड़ गांव से आने वालों को म्हेड़ु,वनाड़ी बैद का काम करने वालों को नाड़ी बैद के रूप में पहचान मिली हुई है जो कालांतर में वैद्य के रूप में स्थापित हो गए।
नगर में बैद-वैद्यों का आगमनः
यह तो सर्वविदित है कि मण्डी नगर बसने के प्रारम्भिक काल में स्थानीय स्तर पर चिकित्सक सीमित रहे होंगे।और जनमानस स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निराकरण के लिए बैद,हकीम,साधु,संत,फकीर इत्यादि के पास सामर्थ्यनुसार ईलाज हेतु जाते थे। इस दृष्टि से देखा जाए तो जब सेन वंश के लोग बंगाल से रोपड़ होते हुए पांगणा, सुकेत,मंगलौरऔर मण्डी तक विभिन्न काल-खण्ड में आए तो उनके साथ अवश्य ही अपने बैद भी रहे होंगे।क्योंकि उस समय आसानी से इलाज नहीं हो पाता था तथा राजा लोग अपने स्तर पर ही अपने विश्वसनीय राजबैद को साथ लेकर चलते थे। क्योंकि उन दिनों आपसी दुश्मनी, कलह, षड्यंत्र और राज परिवारों की अंदरुनी लड़ाई अक्सर होती रहती थी और इसमें असुरक्षा का पुट भी मिला हुआ था।दुसरे राजा लोगों के स्थानीय राणा,ठाकुर व पड़ोसी राजाओं से अक्सर युद्ध होते रहते थे जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों के घायल होने पर उनके ईलाज हेतु बैदों की उपस्थिति नितांत आवश्यक थी। इसलिए हम इस नतीजे पर आसानी से पहुंच सकते हैं कि सेन वंश के लोग जब मण्डी तक विभिन्न अंतराल में पहुंचे होंगे तो उनके साथ अवश्य ही राजवैद व उनकेसहयोगी रहे होंगे जो कालांतर में मण्डी नगर में ही बस गए। वैदयलोग राजाओं के विश्वास पात्र एवं नजदीक होने के कारण, समाज में रुतबा भी उच्च था और स्वाभाविक है कि उन्हें कई सुविधाएं भी मिलती होंगी।
कुछेक इतिहासकारों का कथन है कि तत्कालिन मण्डी राजा के विशेष अनुरोध व आमन्त्रण पर कुछ भलेलोक मण्डी आये थे।भलेलोक व भद्रलोक मुख्य रूप से, बंगाल की तीन पारंपरिक उच्च जातियों क्रमशःब्राह्मण, बैद्य और कायस्थ से संबंधित थी।जो धनी होने के अलावा अंग्रेजी शिक्षा और प्रशासनिक सेवा में उच्च स्थिति रखते थे। और उनमें से कुछ का उल्लेख मण्डी के इतिहास में 16वीं शताब्दी में आए लोगों का कुछ इस तरह है,“जो योद्धाओं की तरह घोड़ों पर सवार होकर नहीं आए थे, या मजदूरों की तरह पैदल नहीं आए थे, बल्कि वे खास लोग थे जो पालकी में बैठकर आए थे।” हमारा मानना है कि उनमें से कुछ बैद और बैद्य थे।
आपके मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि बाहर से लोगों को बुलाने की आवश्यकता क्यों पड़ी होगी?
इस बारे में हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि पुरानी मण्डी छोटे क्षेत्र में फैली थी और राजा द्वारा विकास के कार्य करवाने की सम्भावना कम ही थी।तथा व्यवसाय व आजिविका के साधन सीमित थे। आय का साधन बढ़ाने हेतु राजा रियासत का विस्तार करना चाहता था। राजा का उद्देश्य नगर को इस ढँग से बसाने से था जिसमें गुणी सम्पन्न लोग रहें और मण्डी स्टेट की कीर्ति सारे फैले। क्योंकि यह सारी योजना एक ही राजा के राजकाल में पूरी नहीं हुई ना ही यह सम्भव था क्योंकि राजा अजबर सेन की मृत्यु बर्ष 1534 ई. में हो गई थी और तब तक नगर का मूल स्वरुप सामने आचुका था जिसमें बाद में योजनाबद्ध ढंग से विकास होता रहा।
राजा की सोच दूरगामी थी। राजा नईं राजधानी को भव्य रुप देना चाहता था। उदाहरण के लिए बेहड़ा बनाम राजमहल,देवालय बनाम मँदिर,छोटा हाट बनाम बाजार,नगर बनाम शहर व सम्पन्न रियासतों की तरह सभी मुलभूत सुविधाएं विकसित करना चाहता था लेकिन साधनों का अभाव था।बाहर से शिक्षित और प्रशासनिक सेवा में पारंगत विद्वान,योजनाकार व धनाढ्य लोगों को बुलाना राजा की दुरदर्शी सोच को दिखाता है।
पुरानी मण्डी में बैदय परिवारःअब इसका दुसरा पक्ष भी देखते हैं।1527 ई. को राजा अजबर सेन ने अपनी नई राजधानी वर्तमान मंडी नगर में बसाई थी तो इससे पहले पुरानी मंडी में क्या नाड़ी बैद के परिवार रहते थे। इस बारे में काफी छानबीन की गई लेकिन पुरानी मंडी में हमें ऐसा कोई भी सूत्र या संदर्भ नहीं मिला जिससे पता चले कि यहां पर नाड़ी बैद के परिवार जो खतरी जाति से संबंधित थे,कभी रहे होंगे। अलबत्ता ब्राह्मणों के परिवारों में से एक दो नाम हमें मिले जो बैद का काम करते थे और उनकी इस क्षेत्र में प्रतिष्ठा भी थी।
खतरी समुदाय के प्रसिद्द नाड़ी बैदः
मण्डी रियासत में यह जरुरी नहीं है कि केवल खतरी ही बैद थे।बँगाल में ब्राहम्ण,कायथों का भी बोलबाला था जो कई क्षेत्रों में अपनी योग्यता से समाज में योगदान दे रहे थे।चुकि उस समय लोग अपने नाम के साथ उपनाम नहीं लिखते थे इसलिये लोगों को पेशे के आधार पर ही समाज में पहचान मिली हुई थी।मण्डी में भी ऐसा ही देखने को मिलता है।उदाहरण के लिए बहल उपजाति में नन्दु बैद,रोशनु बैद,फड्डा बैद व कपूर में बैणी माधव के परिवारों का काफी सम्मान रहा है।बीसवीं शताब्दी के कई नाड़ी बैदों के नाम आज भी नगरवासी बड़े आदर से लेते है जिनमें भुपु बैद,परमानन्द बैद,घोप्पू बैद प्रमुख हैं।मण्डी हिस्ट्री में दर्ज है कि रियासत में विद्यासागर की बतौर राजबैद पहचान थी और उनकी मृत्यु होने पर सारी रियासत में शोक की घोषणा हुई थी और बाजार बँद रहे थे।पर हम इनके वंशजों के बारे में जानकारी नहीं जुटा पाये।इसके आलावा ब्राहम्ण जाति में कई प्रतिष्ठित बैद हुए हैं।इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि सभी नाड़ी बैद एक ही समुदाय से रहे होंगे।और नाही यह कहा जा सकता है कि शुरु से मण्डी के सभी नाड़ी बैद खतरी समुदाय के ही रहे होंगे।

शोध,संकलन एवं प्रस्तुति: विनोद बहल एवं डॉ पवन वैद्य /Mandipedia-2023
                                                        ...अगली पोस्ट ”वैदयों की चौकीयाँ व वँशावली” का इंतजार किजिए---

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HARSH
27-09-2023 03:35 PM
बहुत ही रोचक व सुंदर लेख, आपके इतने शोध पूर्ण प्रयास प्रशंसनीय हैं, इतनी तथ्य पूर्वक जानकारी जुटाना आसान कार्य नहीं है बहुत-बहुत साधुवाद।
Dr. N K Awadhwal
28-09-2023 07:34 AM
ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन करने का आतिउत्तम प्रयास प्रसनीय है।
Bharti vaidya
15-11-2023 10:28 PM
बहुत-बहुत धन्यवाद 👏
Divyanshu
19-01-2024 02:12 PM
Nice
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