मण्डी नगर में पान खाने की परंपरा रियासत काल से रही है।यहां पर पान खाने के शौकीन किस कदर रहे हैं इस बात का पता इसी से लगाया जा सकता है की छोटी से नगर में पान की दुकान लगभग प्रत्येक मोहल्ले में हुआ करती थी और कई पान विक्रेताओं ने समाज में अपनी अलग से विशिष्ट पहचान भी बनाई और लोग उन्हें आज भी याद करते हैं। आयुर्वेदिक दृष्टि से भी पान का अपना ही महत्व है जिसका भोजन के पाचन में भी विशेष स्थान है।
सबसे पुराने पान विक्रेता:
लाला हरसुख गोयल:
भंगालिया परिवार से संबंध रखने वाले चौबाटा निवासी लाला हरसुख गोयल रियासत काल में चौहटा में पान की दुकान किया करते थे और इनका पान इतना प्रसिद्ध था की मण्डी के राज परिवार में नियमित रूप से तथा विशेष अवसरों पर इनकी दुकान से पान जाते थे। उनके सपुत्र कमलेश गोयल जो हमारे अभिन्न मित्र भी हैं, ने इस बारे में हमें जानकारी दी। और बताया कि, "मण्डी राज परिवार को जो पान भेजे जाते थे उसे बारे में उनके पिताजी अक्सर बताते थे कि अधिकांश पान में चांदी के वर्क लगे होते थे। लेकिन कुछ विशेष अवसर पर सोने के वर्क लगे पान की गिलौरियां भी भेजी जाती थे और राज परिवार की महिलाएं भी बड़े चाव से पान का सेवन करती थी।"
डब्लू पानबाई:
लंबे समय तक पान बेचने वालों में डब्लू पानबाई जो हांडा परिवार से थे, का नाम भी जहन में आता है जो लाला हरसुख गोयल जी के रिश्ते में भानजे लगते थे।पलाखा बाजार में डब्लू पानबाई की दुकान बेली हलवाई के साथ वाली थी जिसमें अब उन्हीं के रिश्तेदार दुकान करते हैं। डब्लू पानबाई अपने समय में शेरो शायरी के भी बहुत शौकीन रहे और आते-जाते अपने प्रशंसकों को शेरो शायरी सुनाकर अपना मुरीद बना लेते थे।कई वर्षों तक पान विक्रेता के रूप में आप बहुत ही नगर में प्रसिद्ध हुए। इसके अलावा उन्हें पीलिया के रोगियों को मंत्र विधि से इलाज करने में भी महारत हासिल थी जो विद्या उन्हें कहते हैं किसी साधु से वरदान में मिली थी और निशुल्क पीलिया के मरीज का इलाज किया करते थे तथा काफी दूर से पीलिया के मरीज हांडा जी के पास आकर के लाभ लेते थे। उनके कई पान खाने के शौकीन नियमित रूप से दुकान पर आते थे।
नगर के अन्य प्रसिद्ध पानबाई:
हालांकि रियासत काल में नगर की जनसंख्या बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन यहां की भोजन शैली व खानपान के तरीके अपनी विशेषता लिए होते थे और अधिकांश लोग पान खाने के शौकीन हुआ करते थे।जिस कारण छोटे से नगर में कई पान विक्रेताओं की दुकाने हुआ करती थी। शहर के कई वरिष्ठ नागरिकों को आज भी कई प्रसिद्ध पान विक्रेताओं के नाम याद हैं।
गांधी चौक में बेसर,बेद, फिंजु,पंजाबी ढाबा के साथ बक्शी, सिनेमा रोड पर लब्भु व उनके भाई अनंतराम( जिनमें बेटे आज भी पान की दुकाने चला रहे हैं)काफी प्रसिद्ध पान विक्रेता रहे हैं। आजाद ड्राई क्लीनर के साथ लगती दुकान में भी शर्मा परिवार पुराने समय से पान बेचता आ रहा हैं।
इनके अलावा बालकरुपी बाजार में डिम्हुं जो आते जाते लोगों के साथ नियमित रूप से संवाद किया करते थे तथा गप्पे मारने में इनका कोई सानी नहीं था।
कुंती जो बैडमिंटन के भी बेहतरीन खिलाड़ी रहे, वह भी इसी बाजार में कई वर्षों तक अपनी दुकान में पान बेचते रहे और युवाओं में यह काफी लोकप्रिय थे।
चौबाटा बाजार में एक छोटी सी दुकान में सागर मल्होत्रा पान विक्रेता के रूप में आज भी याद किए जाते हैं। जहां पर दुकान में लगे छोटे से बेंच पर युवा लोग चुपके-चुपके सिगरेट के कश लगाने नियमित रूप से आते थे। पान चबाते समय नगर की सभी खास खबरों का नियमित रूप से आदान-प्रदान यहां होता था व आते जाते रौनक लगी रहती थी।
नगर के प्रसिद्ध पान विक्रेता दिनेश मल्होत्रा उर्फ धादु
चौहटा में गांधी भवन के प्रवेश द्वार के दाएं ओर साथ लगती पान की दुकान का जिक्र नहीं करेंगे तो यह आलेख अधूरा ही रहेगा। इस दुकान के पान विक्रेता लमक्याड़ु के घर के धादु उर्फ दिनेश नगर के प्रसिद्ध पानबाई है। ब्याह शादियों में इनके पान की बहुत ज्यादा डिमांड रहती है। तथा कई पान खाने के शौकीन कई वर्षों से इनकी दुकान पर नियमित रूप से रोजाना आते रहते हैं।
चौहान पानबाई:
हरेक नगर,कस्बा और शहर में कुछ ऐसी शख्सियतें होती हैं जो अपनी दुकानदारी की वजह से जल्दी ही प्रसिद्ध हो जाती हैं। इसी कड़ी में सिनेमा रोड पर कृष्ण टॉकीज के सामने मशहूर पकौड़े की दुकान के साथ लगते पेड़ के पास पान विक्रेता की दुकान हुआ करती थी। पानबाई का पूरा नाम यूं तो हरबंस लाल शर्मा था लेकिन नगर वासी उन्हें चौहान के नाम से ही जानते थे।
दुकान की विशेषता यह थी कि इसके मक्खन लगे बंद व टोस्ट बहुत प्रसिद्ध थे जिसमें छोटी-छोटी क्युब नुमा मक्खन की टिकी लिपटी होती थी। तथा चाय बेचने के लिए पीतल का एक बड़ा ही कलात्मक ढंग से बना हुई बर्तन रखा होता था। जिसे जम्मू और कश्मीर में कहवा बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है और कोयल डालकर इसमें हमेशा गरम चाय रखी जाती थी।
चौहान का नाम पढ़ने के पीछे की कहानी भी बड़ी रोचक है। पुलिस विभाग में कार्यरत कोई कर्मचारी चाय पीने आया और पैसों के बारे में कुछ झगड़ा हरबंस लाल दुकानदार से उनका हो गया। झगड़ा जब ज्यादा बढ़ गया तो दुकानदार ने ताव में आकर एक थप्पड़ उस चाय पीने वाले को रसीद दिया जिस कारण काफी हो हल्ला मचा और मामला थाने तक पहुंच गया। क्योंकि थप्पड़ पुलिस वाले को मारा था तो यह बहुत बड़ी बात थी जिस कारण जब हरबंस लाल अगले दिन बाजार से गुजरने लगे तो किसी ने उन्हें कह दिया, भाई! आप तो चौहान हैं। चौहान उनकी वीरता को लेकर के कहा गया था जो इतना लोकप्रिय हुआ कि उनका नाम ही चौहान पड़ गया और मूल नाम पीछे रह गया।
हरबंस लाल के पिता व दादाजी जम्मू में भारतीय सेना में कार्यरत रहे तथा यह परिवार मूल रूप से बल्ह के बैहना गांव का का रहने वाला है।इस दुकान के पान खाने वाले कई नियमित ग्राहक थे जो चौहान जी का ही पान खाना पसंद करते थे और उनकी चाय व मक्खन लगे बंद का स्वाद आज ही कई लोग याद करते हैं। हरबंस लाल का बेटा विक्की अब रेडीमेड कपड़े की दुकान इंदिरा मार्केट में करता है।
उपरोक्त पान विक्रेताओं के अलावा अन्य और भी कई विक्रेता शहर में पान बेचते थे उन सभी के नाम यहां पर लिखना संभव नहीं है।
मण्ड्याली धाम के बाद पान का सेवन:
रियासतकलीन समय से नगर में मण्ड्याली धाम खाने के बाद पान का सेवन नियमित रूप से लोग किया करते थे और महिलाएं भी पान खाने की शौकीन हुआ करती थी। शोभा सुपारी व पान का सेवन किए बिना धाम खाने का पूरा आनंद नहीं आता था(उन दिनों धाम खिलाने के बाद आज की तरह सौंफ नहीं रखी जाती थी) अलबता समय के साथ अब पान का सेवन धाम खाने के बाद बहुत कम हो चुका है और अब सौंफ के साथ-साथ टॉफी, सुपारी तथा हजमोला के पैकेट भी रखे जाने लगे हैं।
भाई-दूज में पान की भेंट:
भाई-दूज के त्योहार पर मण्डी नगर में प्रारंभ से ही स्थानीय स्तर पर घर में बनी पारम्परिक मिठाईयों के साथ पान,मकसूद और सुपारी भेंट करने का रिवाज रहा है। पान के बिना टीका लगाने की थाली अधूरी मानी जाती है।पान को वैसे भी सम्मान स्वरूप देने की परंपरा आदिकाल से रही है और मण्डी में इसका निर्वाह अभी तक किया जा रहा है। शायद इसी कारण से पान को भी भाई दूज के त्योहार पर भेंट करने की परंपरा प्रारंभ हुई होगी अन्यथा कोई अन्य कारण नजर नहीं आता। पता नहीं हिमाचल की अन्य रियासतों में भी कहाँ-कहाँ भाई दूज के त्योहार में पान भेंट करने की परंपरा रही होगी।
लग्न की मिठाई का अहम हिस्सा:
पहले ब्याह शादी कितनी सादगी से आयोजित की जाती थी, इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है।आज के युवाओं को शायद यह सब सुनकर अचम्भा होगा कि पहले बारातियों को लग्न की मिठाई डुन्नू में बंटी जाती थी और साथ में पान भी मकसूद(दराटी से काटी हुई बाल की तरह बारिक गरी, जिसमें बड़ी इलायची के दानों के साथ मिश्री व हरी इलायची मिली होती थी) के साथ दिया जाता था। अक्सर लग्न रात्रि को ही होते थे जिस कारण पान कभी भी रात्रि को असमय खा लेते थे या अगले दिन वह पान खाया जाता था। लेकिन पान के बिना लग्न की मिठाई अधूरी मानी जाती थी।
आलेख एवं शोध: विनोद बहल व डॉक्टर पवन वैद्य।
mandipedia/2023