रियासतकालीन मण्डी की लोहड़ी
Posted on 14-01-2024 05:47 AM

मंडी नगर में लोहड़ी का त्यौहार:

यहां की परंपरा में लोहड़ी का त्योहार विशेष महत्व रखता है तथा इस अवसर पर सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित करके उन्हें दली माश की दाल व मोटे चावल की खिचड़ी बनाकर देसी घी, दही व झोड़ के साथ परोसी जाती है। मकर संक्रांति पर प्रत्येक घर में माश की दाल के भल्ले बनाए जाते हैं और इस पर यह कहावत भी बनी है की इस अवसर पर जो माश की दाल के भल्ले नहीं खाते वह सदा शारीरिक रूप से कमजोर रहते हैं। मंड्याली में इस कहावत को इस प्रकार से कहते हैं;

"जिन्हें नीं खाद्धे

 बिरसु हो उतरायणा रे     बड़े 

  स्यों सदाए मड़े"

इस अवसर पर हम आपको मंडी जनपद में रियासत काल से मंड्याली में गाई जाने वाली लोहड़ी का पुरातन व वास्तविक स्वरूप बता रहे हैं। रियासत काल में जिस भी राजा का राज होता था उसी का नाम लेकर के ही इसे अक्सर महिलाएं घर-घर आकर के आंगन में गाती थी। और इस लोहड़ी में राजा जोगिंदर सिंह की पगड़ी को लेकर के संदर्भ आया है।

इसको अपनी फेसबुक वाल पर मंडी के प्रसिद्ध साहित्यकार और टांकरी विशेषज्ञ श्री जगदीश कपूर जी ने डाला है उनका यह संकलन प्रशंसनीय व स्वागत योग्य है।

लोहड़ी आई हो भाभिये:

लोहड़ी आई हो भाभिये लोहड़ी आई हो 

क्या क्या ल्याई हो भाभिये क्या क्या ल्याई हो ।

 लून्गिया दभटा हो भाभिये लून्गिया दभटा हो /

 सौहरियां रा घर खट्टा हो भाभिये, सौहरियां --- /

 पयोकड़ा घर मीठा हो भाभिये, प्योकड़ा घर --- 

झग्गु टोपू ल्याई हो भाभिये, झग्गु टोपू -----/

 केस जो पन्हयाये हो भाभिये, केस जो -----/

 घिघे जो पन्हयाये हो भाभिये, घिघे जो -----/ 

घिघे रे सिरा टोपी हो भाभिये, घिघे रे -----/

 पैहने राजा गोपी हो भाभिये, पैहने राजा -----/

 टोपी जो पई गया छिंडा, बोलो मुन्ड्रेयो हिम्बा /

 हिम्बे रे पैरा कड़ियाँ, कीने सन्यारे घड़ियाँ /

घड़ने वाला हीरा लगी माघा ऋ झड़ियां /

लोहड़ीये नी घिघा मोड़िये नी

घिघा जमेया था, गुइ बंडेया था

आसे खादा भी नी था, आसा जो दिता भी नी था /

गुड़ रोड़ीयाँ थी भाईयाँ जोडियाँ थी

भाईये घुँघरू घड़ाये, बोबो रे हाथा पैरा पाए

बोबो झलमल करदी आयी, लैणी सेर भर बधाई /

तेरी थालिया केसर तेरा भला करे परमेसर,

देया हो जी, देया हो जी,

आँगण लीपूँ, द्वार लीपूँ, कुंगू रा बरूरा देऊ

देया हो जी जगिंदर सेना री पग बड़ी हो बडी,

देया बधाई, देया बधाई, तुसा रे घरा सयुने री पातरी पायी/

 देया हो जी /

वार बजी बंसरी ता पार बजेया ढोल,

देणा भाइयो देई देया आसा जो लगेया छोड़ / 

देया हो जी ----/

(संकलन;-जगदीश कपर 15/11, मण्डी हि.प्र.)

आलेख एवं प्रस्तुति: विनोद बहल- डॉक्टर पवन वैद्य

mandipedia/2023

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Reviews Add your Review / Suggestion

हर्षपाल
14-01-2024 03:28 PM
मंडी शहर के पारंपरिक त्योहारों की संपूर्ण जानकारी के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।
Chander Kapasi
14-01-2024 04:56 PM
Thanks for bringing precious memories of our Janam Bhumi Mandi..Appreciate what you do so passionately.❤️
Mridula
14-01-2024 05:24 PM
Good information.Thanks for sharing
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