मण्डी में तिलोपा की गुफा-कालखंड दसवीं शताब्दी।
Posted on 07-05-2024 07:33 AM

महासिद्ध तिलोपा की गुफा

व्यास तट पर दो गुफाओं का रहस्य:

बचपन से ही हनुमान घाट की तरफ से पुरानी मंडी की ओर व्यास नदी के तट पर स्थित दो गुफाओं की ओर अक्सर ध्यान जाता था। मन में कुतूहल होता था कि यह गुफाएं किसने कब बनाई होगी, क्यों बनाई होगी इत्यादि इत्यादि। लेकिन कहीं पर भी इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती थी। अब जब मंडीपीडिया के द्वारा मंडी की कला-संस्कृति व इतिहास के बारे में जानकारी इकट्ठी करनी शुरू की तो अबकी बार यह निश्चय किया कि इन दोनों गुफाओं के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठा करनी है।

पिछले वर्ष की बात है मैं विक्टोरिया पुल पर खड़ा होकर इन गुफाओं के फोटो ले रहा था।तो गुफा के पास एक बौद्ध भिक्षु खड़ा दिखाई दिया जो थोड़ी देर में ऊपर विक्टोरिया पुल के पास जहां में खड़ा था रुक गया। जिज्ञासा बस मैने उनसे पूछा कि यह गुफाएं किसकी हैं और यहां पर कौन साधना करता था इत्यादि। बौद्ध भिक्षु ने उत्तर दिया, "कि बाई ओर वाली गुफा में महासिद्ध तिलोपा ने यहां पर तपस्या की थी तथा दाईं और की गुफा में उनके शिष्य निलोपा ने तपस्या की। तिलोपा और निलोपा की जोड़ी इतिहास में दर्ज र्है"। इन्होंने आगे यह भी बताया कि उसमें यह गुरु और चेले दोनों नदी से मछली पकड़ कर के उसे खाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे।इनका कालखंड दसवीं शताब्दी के आसपास का है। भारत में अनयंत्र भी तिलोपा की और गुफा और साधना के बारे में काफी सामग्री सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। लेकिन मंडी में भी तिलोपा ने कभी तपस्या की होगी यह सुनकर ही मन रोमांचित हो गया।क्योंकि मंडी की हिस्ट्री के अनुसार 1527 में पुरानी मंडी से अपनी राजधानी को वर्तमान मंडी में राजा अजबर सैन ने बसाया था लेकिन इस गुफा के विद्यमान होने के दृष्टिगत ऐसा पता चलता है की मंडी के इतिहास के साथ कुछ छेड़खानी हुई है। मंडी राजा के लिए तो इन गुफाओं को बनाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी।जैसा कि नीचे दिए गए फोटो से स्पष्ट होता है की गुफा को जाने के लिए पत्थरों को काटकर सीढ़ियां बनाई गई हैं।यह तो स्वयं सिद्ध होता है कि तिलोपा ने तो स्वयं यह गुफा पत्थर काटकर तो नहीं बनाई होगी। ऐसा प्रतीत होता है कि यह पहले से यहां के उस समय के राजा ने बौद्ध भिक्षुओं की तपस्या के लिए यह गुफा बनाई होगी। दाएं और की गुफा की बनावट से पता चलता है कि यह शायद प्राकृतिक रूप से ही यहां रही होगी क्योंकि उसमें बाहर से पत्थर काटने का कोई निशान या साक्ष्य नजर नहीं आता।

यह सर्वविदित है की मंडी कभी बौद्ध धर्म का लर्निंग सेंटर रहा है और इसे तिब्बत की भाषा में सहोर कहते हैं।इसको अंग्रेजी में Zahor लिखा जाता है।और बहुत ही प्रसन्नता हुई जब खोजबीन करने पर पता चला कि विश्व के कई जगह से पर्यटक इन गुफाओं की खोज के लिए यहां आते रहे हैं जो मंडी के लिए बहुत ही गर्व की बात है।


पुरानी मंडी की ओर विक्टोरिया पुल के सामने स्थित तिलोपा निलोपा की गुफाएं अंतरराष्ट्रीय महत्व रखती हैं तथा बौद्ध अनुयायियों में यह बहुत ही पवित्र मानी जाती है। इसे किन्नौर,मंडी,धर्मशाला रिवालसर के बौद्ध सर्किट में शामिल नहीं किया गया है। यहां तक की शहर वासियों को भी इसकी जानकारी नहीं है ना इसके महत्व का पता है। पर्यटन विभाग की सोच के बारे में तो कह नहीं सकते लेकिन नगर निगम चाहे तो इसको एक बहुत ही सुंदर ढंग से विकसित करके यहां पर कई लोगों के लिए रोजगार दे सकता है तथा आमदनी में भी वृद्धि कर सकता है मेरे विचार में नगर निगम को इसके ऊपर गहराई से सोचना चाहिए।

 गुफा के भीतर बैठकर प्रार्थना करते हुए बौद्ध भिक्षु।


 

गुफा के भीतर से विक्टोरिया पुल(पुले केसरी), नया विक्टोरिया ब्रिज व ब्यास नदी का दृश्य।

अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आई विदेशी महिला।



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