रियासत कालीन मण्डी की जल निकासी व्यवस्था
आईए आज आपको रियासत कालीन मंडी की प्लानिंग व जल निकासी के बारे में बताते हैं। इतिहास में दर्ज है कि वर्ष 1527 में राजा अजबर सेन ने अपनी नई राजधानी वर्तमान मंडी शहर में बनाई थी।
प्रारंभ में यहां पर देखने में आता है कि पुरानी मण्डी के बाद केवल तीन ही मोहल्ले क्रमशः भगवाहन मुहल्ला, दरम्याना मुहल्ला व समखेतर मुहल्ले अस्तित्व में आए थे। इनमें समखेतर मोहल्ला बाद में बना, शायद इसका नाम इसके समक्षेत्र को देखकर ही पड़ा था।
इन तीनों मोहल्लों का यदि आप प्रारूप देखेंगे तो एक बार स्पष्ट हो जाती है की मण्डी नगर एक योजना के तहत बसाया गया था।इसकी सभी मुख्य गलियां,उनके ब्लॉक्स,पानी की निकासी हेतु बनी नालियां,यह सभी कुछ एक प्लानिंग का हिस्सा प्रतीत होता है इसको एकदम से या विभिन्न समय में रेंडम प्लानिंग नहीं की गई होगी। आपको प्रत्येक घर एक लाईन में बने दिखते हैं। और प्रत्येक घर के आगे नालियां बनी है जो की योजना बद्ध तरीके से ही संभव लगता है। जैसा कि नीचे दिए गये रेखाचित्र से वस्तुस्थिति का पता चलता है।
Graphics:Pawan Vaidya
क्योंकि यदि आप 19वीं शताब्दी का इतिहास देखें तो मण्डी को नगर की संज्ञा दी जा चुकी थी और जब इसकी जनसंख्या की गणना हुई तो उसे मंडी टाउन करके दर्ज किया गया था।
नगर का टाउन प्लानर?
लेकिन ऐसा कोई दस्तावेज या उल्लेख इतिहास में कहीं पढ़ने को नहीं मिला जिससे पता चलता हो कि अमुक व्यक्ति ने इसके इन तीन पुराने मुख्य मुहल्लों का आर्कीटेक्ट बनाकर इसके घरों के लिए गलियों की रूपरेखा बनाई हो।प्रत्येक ब्लॉक के साथ ही गलियों और घरों के पानी के जल निकासी के लिए पक्की नालियां रियासत काल की बनी है जिनकी लंबाई और बनावट आज भी वैसी ही है।
यह सोचने का विषय है कि जब राजा अजबर सेन पुरानी मंडी से नई मंडी में आए तो उनके पास कितने साधन रहे होंगे? कैसे योजनाकार रहे होंगे।
पहले प्राय: सभी घर दो मंजिला ही हुआ करते थे और गलियों में कटे हुए पत्थर इनमें लगे थे जो की समतल क्षेत्र होने के कारण बहुत ही सुंदर लगते थे। नालियां ऊपर से ढकी नहीं होती थी। प्रारंभ में लोगों के घर में नल नहीं लगे होते थे और लोग मोहल्ले में स्थित बावलिओं से ही पानी लाकर घर में उसका इस्तेमाल करते थे जिस कारण पानी की खपत बहुत कम होती थी और घरों से पानी पत्थरों की बनी नालियों (चढ़ा) से बाहर बहती नाली में जुड़ जाता था।
मुख्य रूप से आप देखे तो तीनों मोहल्ले में मुख्य रूप से दो हिस्से थे आधा समतल और आधा उतराई लिए हुए था।जिस कारण पानी काफी वेग से नालियों से बहकर के नीचे सुकेती खंड व कहीं कहीं ब्यास नदी में नालियों के माध्यम से मिल जाता था।
नालियां सभी पत्थरों की बनी होने के कारण पहले इसमें कहीं गाद की समस्या नहीं थी। और कहीं पर भी पानी नहीं रूकता था इनको इस प्रकार से बनाया गया था कि पानी थोड़ा सा भी आने पर वह बह जाता था और कहीं रुकता नहीं था।
मंडी रियासत के विलय होने के पश्चात वैसे तो यहां पर नगर पालिका शुरू से चली आ रही थी लेकिन घरों को जाने वाली छोटी गालियों की मलकियत उन घरों के मालिकों के नाम पर ही थी जिस कारण गलियों के अंदर की घर की गलियों और नालियों की सफाई लोग स्वयं ही कर दिया करते थे(बाद में लोगों ने अपने घरों को जाने वाली गलियों के अधिकार नगर पालिका के नाम पर कर दिए जिस कारण नगर पालिका का स्वामित्व छोटी गलियों पर हुआ और बाद में जमादार वहां पर आकर नालियों की सफाई करने लगे) लेकिन मुख्य सड़कों की नालियों की सफाई नगर पालिका द्वारा ही की जाती थी।
नगर की बनावट से स्पष्ट होता है कि चौहटा बाजार का वर्षा का पानी और राज महल से नीचे की ओर (जहां आज साई स्वीट्स है)उतराई होने के कारण सारा पानी गांधी चौक की ओर बहकर चला जाता था और कितनी भी भारी बारिश हो,कहीं पर भी पानी नहीं रूकता था। और आज भी यही व्यवस्था बनी हुई है जो कि काबिले तारीफ है।
मोहल्ले की मुख्य सड़कों की नदियों की व्यवस्था के लिए कोई ज्यादा सफाई कर्मचारी नगर पालिका के द्वारा नियुक्त नहीं किए गए होते थे। हमने बचपन में देखा है कि एक जमादार और एक पानी वाला जिसमें बकरे की खाल से बनी मश्क में वह पब्लिक टैप से पानी भर कर लाता था। और साथ-साथ सफाई वाला कर्मचारी नाली को साफ करता जाता था और कुछ ही देर में मुख्य नालियां साफ कर ली जाती थी। यह व्यवस्था कई वर्षों तक चलती रही।
मण्डी नगर के तीन पुराने मोहल्लों के आर्किटेक्ट को देखकर लगता है की मंडी की नई राजधानी बनने से पहले ही यहां पर यह नगर अस्तित्व में था। मंडीपीडिया इस बारे में गहन शोध कर रहा है और शीघ्र ही 15वीं शताब्दी से पहले का इतिहास और उसकी खोई हुई कड़ियों को आपके सामने लाने का प्रयास करेगा।
-आलेख एवं शोध: विनोद बहल एवं डॉक्टर पवन वैद्य