रियासतकालीन चौहटा बाजार एवं खत्री व्यापारी:
शोधलेख: विनोद बहल एवं डॉ.पवन वैद्य mandipedia.com/2024
अजबर सेन(1500-1534) जिन्हें प्रथम राजा होने का गौरव प्राप्त है, बसोहली (पुरानी मंडी) से अपना राज पाट चलाते थे I सन् 1520 के आस पास स्थानीय राणा व ठाकुरों को लड़ाई में पराजित करके इस क्षेत्र को जीता और सन् 1527 में वर्तमान मण्डी नगर को अपनी नईं राजधानी बनाने का निश्चय किया।
भूतनाथ मंदिर के इर्द गिर्द जैसे जैसे नया नगर बसने लगा राजा के सामने कई चुनौतियां व विकास के नए साधन जुटाने की समस्या, तथा लोगों को रोजाना जिंदगी से संबंधित रोजगार के अवसर पैदा करने की थी। राजा के सामने अब केवल एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह से यहां के व्यापार को बढ़ावा, व खजाने की भरपाई की जाएI कालांतर में ऋतु विशेष के हिसाब से व विभिन्न महीनों के कई धार्मिक त्यौहार व मेलों मे स्थानीय लोग इकठे होते थे जिसमे जरूरत की वस्तुएं मिल जाया करती थी। आमतोर पर चीजों का सट्टा बट्टा करके या किसी से कहलवा कर सामान जुटाया करते थे।लेकिन कोई स्थायी बाजार अस्तित्व में नहीं था। हालाँकि जो व्यापारी इस रास्ते से गुजरते थे वही कुछ समय रुक कर अस्थाई बाज़ार लगाते, जिस्से खास कर नमक, कपड़ा, तम्बाकू इत्यादि की जरुरत पूरी होती थीI इसके अतिरिक्त गावोंवासी स्थानीय खेत की उपज, खादी कपड़ा, गुड़, ऊन, अफीम, व अन्य सामान का भी आदान प्रदान किया करते थेI यही चौहटा बाजार का प्रारंभिक स्वरूप होगाI
ऐसे समय में राजा के मंत्रियों ने व्यापारियों को निमंत्रण देने की सलाह दीI इस प्रस्ताव के बनते ही स्थानीय अथवा बाहरी व्यापारियों को आमंत्रित किया, जिनमे खास कर वैद्य व कायस्थ जाति का उल्लेख इतिहास मे मिलता हैI हालाँकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह लोग राजा के लश्कर का हिस्सा थे या बाद में हिमालयन तलहटी के शहरों से (आज का रूपनगर / होशियारपुर / काँगड़ा इतियादि) से पहुंचेI इसी संदर्भ में पढने को मिलता है कि...........
"....The high caste Hindus like Khatris, Kaisthas, Karars, Mahajans, Suds, Banyas, Aroras, and Bohras migrated to the hills during the Muslim invasions of the north India from the12th to
17th century. These were trading classes. Practically, they held whole commerce of the hill areas in their hands. Almost whole of the mercantile and commercial transactions of this part of the western Himalaya, excepting as a general rule petty hawking and peddling, were conducted by one or the other of these castes. Numerically the most important of these
commercial classes was that of Khatris living in Mandi, Kangra and Chamba who entered as merchants and shopkeepers at the invitation of the Rajas and by their acumen and astuteness attained to a position of influence…”.
“इतिहास में दर्ज है कि "व्यापारी" (महाजन लोक) और "उत्कृष्ट लोग" (भले आदमी) दूर-दूर से पालकी में यात्रा करके पहुंचे (यानी, न तो घोड़े पर, न ही योद्धाओं के रूप में, न ही पैदल, गरीब के रूप में)”
मण्डी गजेटियर में लिखा है कि उनमें से कुछ व्यापारी और दुकानदार राजा के निमंत्रण पर आए और उन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि व कुशलता से अपना व्यापार स्थापित करके समाज में अपना रुतबा बना लिया।
आमंत्रित व्यापारियों में किस जाति के थे यह तो नहीं लिखा है। क्योंकि वर्ष 1940 से पहले हमें कहीं पर भी नाम के साथ सरनेम पढ़ने को नहीं मिलता क्योंकि उस समय में यह प्रथा ही नहीं थी। लेकिन जब हमने चौहटा के व्यापारियों के बारे में छानबीन की तो पता चला कि उसने अधिकांश व्यापारी वैद्य और कायस्थ (कपूर) थे इसलिए इसको आसानी से समझा जा सकता है कि आमंत्रित व्यापारियों में जो पालकियों में लाए गए उनमें धनाढ्य व प्रभावशाली वैद्य व कायस्थ (कपूर) ही खत्री जाति से थे।
"....Some of them entered the state as merchants and shopkeepers at the invitation of the Rajas and by their acumen and astuteness soon attained to a position of influence....”, Gazetteer of the Mandi State 1920 Emersion (ICS)
राजा ने उन्हें जागीर व घर बनाने के लिए जगह का प्रलोभन दिया।कुछ ने राजा द्वारा बनाई गई चौकियों को खरीदकर उन्हें अपना निवास स्थान बनाया और कईयों ने वैसी ही चौकियों का स्वयं निर्माण किया।इस तरह नए व्यापiर और बाजार की संभावनाओं का आगाज हुआI
चौहटा बाजार:
आमंत्रित व्यापारी:
राजा के निमंत्रण पर जो व्यापारी और दुकानदार बाहर से यहां आए वह खुले में कुछ समय के लिए बैठे होंगे। धीरे धीरे बाज़ार अब लंबे समतल मैदान में मंदिर के सामने लगता होगा। इसका आकार और प्रकार दोनों ही 18वी शताब्दि तक बढ़ चूका था व चारों तरफ दुकाने होने के कारण इसे अब चौहटा (चौ-चार + हटा-हाट) बाज़ार के नाम से जाना जाने लगा तथा हम सब आज इसे “मण्डी का चौहटा बाजार” के रूप में जानते हैI इस का स्वरूप आप चौहटा बाजार के प्रथम फोटो में देख सकते हैं जो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है। तत्पश्चात जैसा कि नीचे फोटो में दिखाया गया है छोटे ऊंचाई की एक कतार में लकड़ी की दुकानें राजा मंडी द्वारा बनाई गई। और कालांतर में विभिन्न राजाओं के कार्यकाल में पीछे की ओर बहुत बड़ा चौकीनुमा भवन बना जो मानगढ़ के नाम से इतिहास में दर्ज है। उसके विस्तारीकरण/पुनरुद्धार करते हुए यह चौहटा की सभी दुकानें भी उसी में समाहित हो गई और उनकी रुपरेखा में भी बदलाव आया। आगे चल कर उसके ऊपर भी एक और मंजिल बनाई गई जो दूसरे फोटो में साफ दिखती है और इनकी मीनारें चौहटा बाजार को बहुत ही खूबसूरत और ऐतिहासिक बनाती थी।
Graphic: Dr. Pawan Vaidya
इतिहास में बाजार का संदर्भ:
1527 से लेकर 1664 के मध्य मंडी में चौहटा बाजार अभी तक आकार नहीं ले सका था और छुटपुट व्यापारी अपना व्यापार तब तक करते आ रहे थे। इस अवधि में अभी तक आठ और राजा विभिन्न कालखंड में अपना राज कर चुके थे। लेकिन राजा श्याम सेन (1664) व गुरसेन((1679) ने अपने राज्य काल में स्थानीय व्यापार के विकसित होने में बहुत भूमिका निभाई। चौहटा बाजार के संदर्भ में इतिहास के कुच्छ अंश इस प्रकार हैं………..
सबसे पहले तो आप नीचे चौहटा बाजार का प्रथम फोटो जो सोशल मीडिया पर उपलब्ध है देखें।दुकानों की कतारें स्पष्ट दिखती हैं। क्योंकि इस बात की पुष्टि मंडी गजेटियर से भी होती है जिसमें वर्णन आता है कि विलियम मूर क्राफ्ट जो प्रथम यूरोपियन मंडी रियासत में आया था,उसने मार्च 1820 को मंडी रियासत की यात्रा की जो बिलासपुर, सुकेत से होते हुए मंडी में आए जहां उनका कैंप लगा था। उन्होंने अपनी यात्रा वृतांत में लिखा है कि' बाजार काफी बड़ा व घर नीले स्लेट की छत वाले थे।
“Described Mandi a bigger place than Kullu. The palace conspicuous by its tall walls (DUMDAMA) and houses having blue slate roofs. A large proportion of the town is on the opposite side of the Beas and accessible by a large ferry boat" (The gazetteer of Mandi State 1920 Emerson ICS)”
दूसरा संदर्भ 1839 का है जिसमें अंग्रेजी इतिहासकार विग्ने ने मंडी रियासत का दौरा किया, तो उन्होंने मंडी नगर जैसी छोटी जगह के लिए एक अच्छी तरह से स्टॉक किए गए बाजार का वर्णन किया, जो चौहटा बाजार की ओर इशारा करता है।
“He described a well-stocked market for a small place like Mandi”
फोटो साभार: अनिल शर्मा
मण्डी नगर के यात्रा वृतांत का एक और संदर्भ अंग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक Lights and shades of hill life by St.J Gore- 1895 में किया है। पुस्तक में लिखा है ......
".....Civilization has certainly extended to Mandi. Mandi is a wonderfully little town built where Suketi river meets Beas in a deep green pool. A fine iron suspension bridge joins the banks of the Beas, while a row of pointed roofed Hindu temples, with a steep broad flights of steps down to the river, adds to the picturesque appearance of the place as you come in from the north The little streets of the town were well paved and well swept, thru their narrowness reminded us again that we were still in a wheel less country. We passed thru a rather picturesque open market place, well thronged with people , one side of which is overshadowed by the Raja of Mandi’ s palace, the older part of which is a tumble down native erection, to which has been added a newer building of very doubtful European architecture, adorned with much painting and colour…..”.
“...कि जो बहुत ही छोटे भू-भाग में फैला थाI सभ्यता का विस्तार निश्चित रूप से मण्डी तक हुआ है। मंडी एक अद्भुत सुंदर छोटा शहर है, जो ठीक उसी जगह पर बना है जहां सुकेती नदी एक गहरे हरे पूल में ब्यास से मिलती है। एक बढ़िया लोहे का झूला पुल (राजा की "विक्टोरिया जयंती" भेंट) ब्यास के तट से जुड़ता है, जबकि नुकीली छत वाले हिंदू मंदिरों की एक पंक्ति, नदी के नीचे खड़ी चौड़ी सीढ़ियों के साथ, जगह की सुरम्य उपस्थिति को बढ़ाती है जैसे ही आप उत्तर से आते हैं। शहर की छोटी-छोटी सड़कें अच्छी तरह से पक्की और अच्छी तरह से साफ-सुथरी थीं, हालांकि उनकी संकीर्णता हमें फिर से याद दिलाती थी कि हम अभी भी पहिया-विहीन देश में हैं। हम लोगों से खचाखच भरे एक सुरम्य खुले बाजार से गुजरे, जिसके एक तरफ मंडी के राजा के महल की छाया है,...."
Photo: Social Media
चौहटा बाज़ार की दुकानें:
हम चौहटा बाजार को चार हिस्सों में बांट सकते हैं ताकि उसका स्वरूप सही से समझ में आ जाए।
1) मानगढ़ बिल्डिंग में दुकानों की कतार जो फोटो में भी दिखाई दे रही है इसमें 18 दुकानें बनाई गई थी। इनमें क्रमशः वैद्य, कपूर, लोहिया, गोयल, बहल के नाम प्रमुखता से गिनाए जा सकते हैं तथा एक दुकान राजगुरु जगदीश पुरोहित के परिवार की थी।
2) विपरीत दिशा में आज के द्विवेदी क्वाथ हाऊस की तरफ की लाइन में 13 दुकानें अस्तित्व में आ चुकी थी इनमें से एक दुकान नगर के प्रतिष्ठित लालू पंडित परिवार की थी। बाकी दुकानों के मालिक क्रमशः टंडन, कपूर, वैद्य परिवारों से संबंधित था।
3) रामू बिश्ट ब्लूज कैफे की लाइन में 6 दुकानें बनाने के लिए राजा मंडी ने भूमि दी थी। जिन पर क्रमशः वैद्य, गोयल व कपूर परिवार व्यवसाय करते थे।
4) आज के मोंटे कार्लो दुकान की लाइन में आठ दुकानों का राजा ने निर्माण करके दिया था। जिनमें प्रमुखता से क्रमशः कपूर, वैद्य व गोयल परिवारों के दुकानदारों के नाम उंगलियों पर गिराए जा सकते हैं।तथा एक दुकान ब्राह्मण परिवार की थी। मानगढ़ बिल्डिंग की तरह ही लकड़ी की नक्काशी दार चौकी इन दुकान के पीछे की ओर स्थित थी जिसके बाजार की ओर वाले हिस्से में दुकानों को बनाया गया था।
-जहां से मोती बाजार प्रारंभ होता है वहां पर तीन दुकाने खत्री समुदाय की थी जो सुनार का काम करते थे जिनमें धवन, मल्होत्रा व कपूर परिवार शामिल थे तथा भूतनाथ मंदिर के सामने वैद्य परिवार की पंसारी की दुकान थी।
प्रारंभ में व्यापार केवल छुटपुट वैद्य और कैथ उपजाति के लोगों ने अपनी दुकानें बनाकर प्रारंभ किया और विस्तारीकरण के चलते और बाकी उपजातियाओं के लोग भी इस व्यापार में जुड़ते गए जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है।
चुंगी खाने की स्थापना:
चौहटा बाजार अब एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अच्छी तरह स्थापित हो चुका था और दुकाने सामान से भरी रहती थी। जिससे स्पष्ट होता है कि नगर के बाहर और आसपास के क्षेत्र से सामान नगर कि दुकानों में नियमित रूप से आता था जिस कारण राजा के राजस्व में चुंगी से भी नियमित आय होती थी। चौहटा में पातके पास स्थापित चुंगीखाना/जगातखाना मंडी राजा सिद्ध सेन द्वारा स्थापित करवाया गया था।
चुंगी खाने की स्थापना और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में मंडी गजेटियर में लिखा है;
"व्यापार पर कोई शुल्क नहीं है, न ही अब राज्य में कहीं भी चुंगी लगाई जाती है। सभी दुकानदार और कारीगर वार्षिक कर का भुगतान करते हैं, जो अतीत में एक राज्य ठेकेदार द्वारा मंडी शहर में चुंगी के साथ एकत्र किया जाता था। संग्रह की घटना और विधि दोनों मनमाने और अनियमित थे। 1918 से शहर में चुंगी समाप्त कर दी गई है, और पूरे राज्य में दुकान कर का एक नया मूल्यांकन शुरू किया गया है, जिसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह दुकान की औसत अनुमानित आय पर आधारित है और राज्य द्वारा सीधे एकत्रित की जाती है।"
"There are no duties on trade, nor is octroi now levied any- where in the State. All shop-keepers and artizans pay an annual tax, which in the past was collected, with octroi in Mandi town, by a State contractor. Both the incidence and method of collection were arbitrary and irregular. Octroi in the town has been abolished since 1918, and a new assessment of shop-tax introduced throughout the State, the main feature of which is that it is based on the average estimated income of the shop and is collected directly by the State.
व्यापार का प्रकार: एक जगह मंडी गजेटियर में नगर में किए जाने वाले व्यापार की प्रकृति को वर्णित किया है और लिखा है कि;
"आयात में मुख्य रूप से यूरोपीय सामान, पीतल, तांबे और अन्य धातुओं के घरेलू बर्तन, अमृतसर बाजार से सोना और चांदी, होशियारपुर जिले से गुड़, तेल और देशी कपड़ा और एक निश्चित मात्रा में खेवड़ा नमक शामिल है। दुकानदारी का व्यवसाय मुख्य रूप से खत्रियों के हाथों में है, लेकिन कुछ बोहरे भी हैं; कुछ ब्राह्मण भी व्यापार में संलग्न हैं"।
"The imports consist mainly of European piece-goods, house- hold vessels of brass, copper and other metals, gold and silverR from the Amritsar market, gur, oil and country-made cloth from Hoshiarpur district, and a certain amount of Khewra salt. The shop-keeping business is mainly in the hands of Khatrís, but there are a few Bhoras; some Brahmans also engage in trade".
19वीं शताब्दी के मध्य तक चौहटा में व्यापार देखें तो पता चलता है कि उपरोक्त दुकानों में क्रमशः नमक, शराब, तंबाकू,करियाना,बूट चप्पल, लोहे का सामान, बन्दूक, हार्डवेयर ,धागे, कपड़े ,रंग, स्टेशनरी, पंसारी, सिलाई मशीन, बिजली का सामान, सुनार,पानबाई की दुकानें खुल चुकी थी। थोक कि खाद्यान्न वस्तुएं प्रमुखता से बेची जाती थी जिसमें आसपास के गांव से अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते थे और कुछ छोटे दुकानदार भी यहां से सामान ले जाकर गांव की दुकानों में बेचते थे।
आज भी दुकानों की संख्या लगभग उतनी ही है केवल दो-तीन दुकानों में पार्टीशन होने के कारण थोड़ी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। कुछ दुकानों के व्यापार का स्वरूप बाद में बदला गया है। वर्ष 1905 में आए भीषण भूकंप और बाद में अग्निकांड में भी
कुछ दुकानें गिरी व नष्ट हुई थी।
साभार: सोशल मीडिया में सैटेलाइट इमेज चौहटा बाजार।
उपरोक्त शोध से स्पष्ट होता है की प्रारंभ में रियासत काल के समय सारा व्यापार खत्री समुदाय के हाथों में था और चौहटा में अधिकांश व्यापार आज भी उन्हीं खतरियों की अगली पीढ़ी कर रही है। कुछ एक दुकानें रियासत के विलय होने के पश्चात 1948 के बाद भी खुली।
यह आलेख केवल चौहटा बाजार के व्यापारियों के दृष्टिगत ही लिखा गया है। इस तरह हम देखते हैं कि मण्डी रियासत के निर्माण में खत्री समुदाय का व्यापारिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा योगदान है।
विशेष आभार: डाटा संकलन श्री जगदीश वैद्य (जग्गू)
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