रियासत कालीन मण्डी की भोजन शैली,भाग-1
Posted on 13-10-2024 10:45 AM

       रियासत कालीन मण्डी की भोजन शैली,भाग -1

शोधलेख: विनोद बहल एवं डॉक्टर पवन वैद्य mandipedia.com/2024

सभी स्थानों की अपनी विशेष भोजन शैली की व बनाने की परम्परा होती है और सभी को इस पर बड़ा गर्व होता है कि हमारा खाना ज्यादा सर्वश्रेष्ठ,लजीज व स्वादिष्ट है। मंडीपीडिया ने भी जब रियासत कालीन मंडी की भोजन शैली को गहराई से जाना परखा तो ज्ञात हुआ कि इसकी कुछ अपनी विशेषताएं हैं जो पिछले 400 सालों से अनवरत चली आ रही है। और अभी भी अधिकांश वही भोजन बड़े चाव से नगर के प्रत्येक घर में समय और ऋतु के हिसाब से खाए जाते रहे हैं। 

किचन गार्डन (सुआड़) की परम्परा:

भोजन शैली की इतनी ज्यादा समानता है की आपको प्राय: सभी घरों में स्वाद भी लगभग समान ही मिलता था और इसको अभी तक घर की महिलाओं ने बड़े चाव व मेहनत से संभाल कर रखा है।

किचन गार्डन (सुखाड़) की परम्परा:

पहले नगर में तीन मोहल्ले क्रमशः भगवाहन, दरम्याना, समखेतर के अलावा व्यास नदी के दूसरी तरफ पुरानी मंडी ही था। घर कम होने के कारण स्थान खुला था और लोग अकेले मकान में नहीं रहते थे।अतः चौकी नुमा बड़े-बड़े घरों में लोग रहते थे और उसका लेआउट कुछ इस तरह से होता था कि प्रायः प्रत्येक घर के साथ एक किचन गार्डन जरूर रहता था जिसे स्थानीय भाषा में 'सुआड़' कहते थे। रोजाना की आवश्यकताओं की सब्जियां ऋतु के हिसाब से उगाही जाती थी जैसे मुली, हरा धनिया, पोदीना, बैंगन, कद्दू, पेटठा, सजाकड़, घीया, करेला आदि जिससे परिवारों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती थी। 

तब तक मंडी में सब्जियों की दुकान और बाजार अभी तक विकसित नहीं हुआ था।हम यह बात 17वीं और 18वीं शताब्दी के अंत तक की कर रहे हैं। अभी भी आपको इन उपरोक्त चारों मोहल्ले में कुछ-कुछ घरों के साथ सुआड़ नजर आ जाएंगे लेकिन सामाजिक स्थिति में बदलाव के दृष्टिगत अब लोग इसमें सब्जियां नहीं उगाते क्योंकि यह प्रचुर मात्रा में आसानी से बाजारों में उपलब्ध है।लेकिन कुछ किचन गार्डन के शौकीन तबीयत के लोग अभी भी अपने घर के बाहर की खाली जगह में किचन गार्डन में कुछ ना कुछ उगा कर अपने शौक की पूर्ति करते आ रहे हैं।

स्थानीय हाट-पलाक्खा बाजार:

भूतनाथ बाजार में बालकरुपी मंदिर से थोड़ा आगे वजीर हाउस के मध्य में पलाक्खा बाजार बहुत ही लोकप्रिय हाट रही है। हालांकि छोटे से बाजार में मुश्किल से 17-18 दुकाने थी लेकिन इनमें सब्जियों की दुकाने न होकर ग्रामीण लोग सुबह के समय दुकान के बाहर लकड़ी की पटरियों पर बैठकर दुकान खोलने से पहले पहले सब्जियां बेचकर चले जाते थे।आपको यह पढ़ कर आश्चर्य होगा कि आज भी इस बाजार में तीन चार दुकानों की पटरियों पर सुबह आपको सब्जियां बेचते हुए ग्रामीण लोग मिल जाएंगे।

नगर के सब्जी उत्पादक:जब बल्ह वाला क्षेत्र सुकेत रियासत के साथ राजनीतिक प्रतिद्वंदीता की समाप्ति पर मंडी रियासत के अधिकार में आ गया तो उपजाऊ क्षेत्र होने के कारण स्थानीय किसानों ने इसमें बड़े पैमाने पर फसलों के साथ सब्जियां उगानी शुरू कर दी जो काहे बगाहे नगर तक खचरों के माध्यम से अथवा लोग पैदल चलकर ले आते थे और और हॉट नुमा स्थान पर बैठकर बेचते थे। 

बाद में जब बल्ह के उत्पादक मंडी राजा के आमंत्रण पर नगर के आज के सैन मूहल्ला में आकर बस गए तो बड़े पैमाने पर वह सब्जियां उगाने लगे।फिर राजा मंडी ने चौहटा के पास सब्जी मंडी के निर्माण हेतु कुछ जगह चयनित की जिस पर सब्जी मार्केट बाद में विकसित हुई। जहां पर आज स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की चौहटा में बिल्डिंग बनी है, वहां कभी सब्जी की मार्केट हुआ करती थी और इसमें लकड़ी के खोखे नुमा बाजार की कतार  होती थी।इसमें एक बार आग भी लगी थी जिसे उस समय लक्कड़ बाजार के नाम से जाना जाता था।स्थानीय व्यंजनों का आयुर्वेदिक दृष्टि से महत्व:जहां तक मंडी के पारंपरिक व्यंजनों की बात है सभी का आयुर्वेदिक दृष्टि से कुछ ना कुछ महत्व है तथा ऋतु के अनुसार इनमें से कई व्यंजन उस समय ही बनते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं और इनका अभी तक मंडी नगर के घरों में विशेष स्थान बना हुआ है। इसके बारे में विस्तार से आगे की किश्तों में लिखा जाएगा।

खाना खाने का समय:

मंडी के सभी घरों में 70 के दशक तक खाना खाने का समय लगभग एक बराबर ही होता था। प्राय: सभी घरों से कोई ना कोई सरकारी कर्मचारी होता था तो इसलिए परिवार के सदस्य और स्कूल जाने वाले बच्चे सुबह 9:30 बजे तक दाल चावल ले  झोल का पारंपरिक भोजन कर लेते थे। सुबह उठते ही छोटे बच्चों को दूध के साथ रात का बासी बटुरु दिया जाता था जिसे वह उसमें डुबोकर (चोकीके)बड़े चाव से खाते थे और अब वैज्ञानिक शोध भी इस धारण की पुष्टि कर रहे हैं कि खमीर युक्त खाना और विशेष कर बासी रोटी स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभप्रद है। पढ़ने वाले छात्र आदि छुट्टी में घर जाकर अंगूठी के पास रखी दाल और भात को खाते थे। लेकिन रात्रि भोजन को खाने का एक विशेष समय होता था और सूर्यास्त के समय लगभग 6 बजे के आसपास रात्रि भोजन कर लिया जाता था।और सभी सदस्य इकट्ठे बैठकर साथ खाना खाते थे।चुकी मंडी में रियासत काल में नल घरों में नहीं लगे होते थे तो सभी घरों से बावली का पानी जरूर आता था। और यही प्रथा कई घरों में अभी तक चली आ रही है कि भोजन के समय शिबा बावली का पानी विशेष तौर पर लाकर प्रयोग में लाया जाता रहा है। लेकिन खाना खाने का समय आप बदल चुका है और देर रात्रि में लोग खाना खाने लगे हैं जिस कारण दुषित जीवन शैली के कारण बीमारियों का प्रकोप भी नगर में बढ़ता जा रहा है। 

उच्च वर्ग के घरों में बोटी/बोटिन रखने की परंपरा:

मण्डी नगर में कुछ धनवान और प्रतिष्ठित लोगों के घर में पारिवारिक बोटी रखने की परंपरा कई वर्षों तक रही हैं और कुछ जगह पर महिला सैफ भी इस कार्य को करती थी जिन्हें  मंडयाली में 'बोटणी' भी कहा जाता था। इन घरों में संयुक्त परिवार होने के कारण बड़ी संख्या में पारिवारिक सदस्य  बड़ी-बड़ी चौकियों में रहते थे।कुछ घरों में तो ऐसी परंपरा भी थी जहां पर दूर-दूर के रिश्तेदार भी खाना खाने यदा कदा आते रहते थे और उन्हें बड़े आदर और सम्मान से स्थानीय भोजन पंगत में बिठाकर खिलाया जाता था।

जारी है.............

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HARSH PAUL
14-10-2024 01:19 PM
भाभी पीढ़ी के लिए बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी।
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