रियासत कालीन व्यंजनों(मरोलण) के नाम और प्रकार:
Posted on 24-10-2024 05:07 AM

मण्डी नगर की भोजन शैली-भाग-2

व्यंजनों(मरोलण) के नाम और प्रकार:

शोध आलेख:विनोद बहल एवं डॉ.पवन वैद्य।  mandipedia.com/ 2024

अपनी किस्म के इस शोध आलेख में मंडी नगर के रियासत कालीन व्यंजनों को एक जगह पर समाहित करने का प्रयास किया गया है। मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकांश व्यंजन अपने मूल रूप में आज भी रसोई में अपना स्थान मौजूद रखने में सफल रहे हैं। आप इनमें से कितने व्यंजन खा चुके हैं? यदि कोई लिस्ट में से छूट गया हो तो कृप्या मार्गदर्शन करें। इस कड़ी में मंडी के पक-पकवान शामिल नहीं किए गये हैं।

1.घरों में बनने वाली सब्जियां:

कुछ सब्जियां तो ऋतु अनुसार बनाने की परंपरा अभी तक अनवरत निभाई जा रही है। कुछ सब्जियों घर में विशेष आयोजन और उत्सव के अनुसार अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। इन की विशेषता यह है कि पिछली चार शताब्दियों से कोई विशेष बदलाव नहीं आया है और उसी रूप में इनका प्रयोग घरों में होता है।-घरों में बनने वाले प्रमुख पारंपरिक व्यंजन:रसोई में निम्नलिखित व्यंजनों की प्रधानता अभी तक बनी हुई है लेकिन यह पूर्ण लिस्ट नहीं मानी जा सकती।

*भल्ला-माश,कुल्थ व मूंग(मंगोड़ू)।

*पुलाव -बड़ी(ब्रिचड़ा), कुल्थ (कथीचड़ा), व चने का पुलाव।*खिचड़ी-दली माश,मूंग की खिचड़ी।

*बड़ीयां-चूँडुआँ बड़ी,खड़ी बड़ी,आली बड़ी,मुच्छुआं बड़ी।

*कचौरी व सिड्डू - कोदरे, गदंम और चावल के आटे की।

*दहीं वाले व्यंजन- दही वाले आलू, दहीं-बुँदी, दहीं-भल्ला, रेअ्ड़।झोड़-पकोड़ी।

*भात-मांड निकाला भात,छलुआं भात(तुड़की रा भात),झींझण।

पीच्छ (मांड)निकाल कर उसे गरमा गरम, नमक,देसी घी व थोड़ी दाल डालकर पीना।

*:बटुरु-छलुआं, ल्हुसीरे,चिल्ला( चिल्लड़ु), आदि।

*जंगली सब्जियां:लींगड़,गुछी, मसरुम,चलींगड़, मूंगरे,फेगड़ी,डींडड़ू,तरयाम्बड़,

*मैदा से बने: लूची,बाबरू, गुलगुले आदि।

*मक्की(छल्ली),कोदरा,चावल, भरेसा की रोटी।

*दम-पतरोड़ू का दम, बैंगन (सगोतरू)का पोस्ट वाला दम,आलू चने का दम,लींगड़ का दम,घंडयाड़ी, जिमीकन्द का दम।

*पत्तेदार साग सब्जियाँ:चुड़ा रा साग,सागा रा धाँधलू, सगला,भुजी,पतरोडु,काठू,कचनार(करयाड़े़),गंधेलू,मूली का भुजू,ऐलौ रा धाधड़ू,भांगरु,

*धूप में सुखाई गई सब्जियाँ:टमाटर, करेला, पेठा, फलों के टुकड़ों की सकोरी,आँवला मुरब्बा,जैम आदि।

*पेय पदार्थ:बुरांश के फूल का पेय, पोस्त का शरबत।

*प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: हाथ से बनी सेवियां, सिरका, छांग, फुलबड़ी,पापड़,आदि।

*विशेष खाद्य पदार्थ:खजर खोपा,चीमू(शहतूत),खरनू,आखे, कसमड़े़, चरोड़ी, लच्छे, फालूदा(कतीरे का गोंद), सरयारे का लडडू, सोंठ, 

*विशेष नमक:मंघोड़ू रा नमक, काला नमक।

*मिष्ठान:चावल खीर,हलुआ,सीरा,लुगड़ा,मीठा भात, साबूदाना खीर, सरयारा खीर।

*फलाहार-पारम्परिक खाद्य:मिला,भरेसा,लाह्फी,काह्ई आदि।

*कई अन्य भूले हुए जंगली खाद्य पदार्थ/व्यंजन।

-मण्डयाली धाम:

1.सालंग (राजे री दाड़):

प्रारंभ में जब सेपू बड़ी अस्तित्व में नहीं आई थी तो उस समय माश की दाल से सालंग का दम बनता था। और मंड्याली धाम का यह प्रमुख व्यंजन था।इसको बनाने में देसी घी ज्यादा मात्रा में प्रयोग होता था जिस तरह से चंबा के मधरा में होता है  तो यह काफी महंगी पड़ती थी और आमजन इसको अपने घरों में बनाकर प्राय नहीं खिला पाते थे। लेकिन राज परिवारों में होने वाले सभी उत्सवों व आयोजनों में सालंग मंड्याली धाम का प्रमुख आकर्षण होता था। यह दम इतना प्रसिद्ध हो गया की इसे राजे री दाड़(राजा की दाल) से नगर में पहचान व प्रसिद्ध मिली।2.दालों का प्रयोग:

धाम में सब्जियों के अभाव में सारे खाने में दालों का ही प्रयोग होता था जिनमें बदाणे का मीठा,सेपुबड़ी,कोहड़ का खट्टा, गोगड़े का खट्टा,माश की दाल प्रमुखता से गिनाई जा सकती है।धोतुआं दाल,आलू व सफ़ेद चने का दम,घंडयाली का दम अपने विशेष स्वाद के लिए बड़े चाव से बनाया व खाया जाता है।सब्जियों में कद्दू व पेठा क्रमशः खट्टा व मीठा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।मौसम के हिसाब से लींगड़ का दम अक्सर बना लिया जाता था।अंत में दाल के साथ झोल व मीठे भात से मण्ड्याली धाम पूर्ण मानी जाती है।

3. मंड्याली धाम में सब्जियों की नगण्यता:

मंड्याली धाम समय के साथ कुछ इस कदर विकसित हुई कि इसमें न्यूनतम मात्रा में सब्जियों का प्रयोग होता था। कारण यही था कि उस समय ना बाजार में सब्जियां बिकती थी ना घरों के पास सुआड़ में इतनी प्रचुर मात्रा में सब्जियां उगती थी कि  मंड्याली धाम में  प्रयोग किया जा सके। अलबता कद्दू और पेठा गांव से अपने कठीयार व जमीनों से आसानी से उपलब्ध हो जाता था। सब्जियों के अभाव में दालें आसानी से उपलब्ध होती थी जिनका धाम में प्रयोग होने लगा और मूल रूप में यह परंपरा अभी तक जारी है।

4.मांसाहारी व्यंजन: पहले केवल बकरे का मांस ही प्रयोग होता था जिससे मधरा-गुल्टा चावल के साथ ब्याह शादी व विशेष उत्सव में अपने सगे संबंधियों को लोग खिलाते थे। और अब भी यह प्रथा अनवरत जारी है तथा सामर्थ्यवान लोग इन पारंपरिक मांसाहारी व्यंजनों को अक्सर खिलाते रहते हैं जिसमें पहले घोरल(घोर्ड) का मांस भी शामिल रहता था।इसके अलावा शिवरात्रि के मेले व टारना की जात्रा में लुची के साथ पोटी का आनंद लोग बड़े स्तर पर करते आ रहे हैं।पोटी अक्सर दुकानों में ही अधिकतर बनती है क्योंकि घर पर इसको बनाने में काफी मेहनत लगती है।

5..खटाई युक्त आहार: शुरू से नगर की भजन शैली ऐसी रही है कि इसमें बिना खटाई के प्रयोग के भोजन पूर्ण नहीं माना जाता। चावल और माश की दाल के साथ झमीरडी जिसे आप जंगली नींबू भी कह सकते हैं, व झोल,ऐलो की चटनी बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यप्रद मानी जाती है।। गर्मियों में चावल दाल के साथ पुदीना और अनारदाने की चटनी बड़े चावल से खाई जाती है।6.अचार: घरों में ऋतु के हिसाब से अचार नियमित अंतराल पर डालकर रखा जाता है और अपने सगे संबंधियों में बांटने का भी रिवाज रहा है। 

अचारों में प्रमुखता से घण्डयाली,सूरन,लींगड़,आम, नींबू ,मिर्च, अदरक, लहसुन, घोरल, जिमीकन्द का नाम लिया जा सकता है। इसके इलावा सब्ज़ियों के आचार जैसे- मूली, गोभी, गाजर, बैंगन आदि।

(इस आलेख में नगर के पारंपरिक पक-पकवान शामिल नहीं किए गये हैं। उनको अलग से संकलित किया जा रहा है)

   

                               -*-

Read More

Reviews Add your Review / Suggestion

Chander Kapasi
24-10-2024 03:08 PM
Keep writing & enriching us. Amazing. Enjoyed thoroughly.Brings back fond memories.
mahendrubanita@gmail.com
24-10-2024 04:38 PM
Their daily routine
Paul Harsh
25-10-2024 12:54 PM
अद्भुत प्रयास इस जानकारी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।
Shiv Kumar Surya
27-10-2024 11:54 AM
आपके प्रयास की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम।
Back to Home